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सांवलिया सेठ मंदिर में जलझूलनी एकादशी धूमधाम से मनाई गई, 450 किलो चांदी के रथ में विराजमान किए गए बाल स्वरूप

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राजस्थान समेत पूरे उत्तर भारत में बुधवार को जलझूलनी एकादशी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में चित्तौड़गढ़ के प्रसिद्ध सांवलिया सेठ मंदिर में भी भव्य धार्मिक आयोजन किए गए। मंदिर में आए हजारों भक्तों ने इस पर्व का आनंद लिया और आस्था एवं भक्ति के अद्भुत दृश्य का हिस्सा बने।

जलझूलनी एकादशी के अवसर पर मंदिर प्रशासन ने दोपहर 12 बजे भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया। इस दौरान सांवलिया सेठ के बाल स्वरूप को 450 किलो चांदी से बने रथ में विराजमान किया गया। भक्तों की भीड़ रथ को खींचती हुई पूरे मार्ग में उत्साह और श्रद्धा का वातावरण उत्पन्न कर रही थी।

मंदिर के पुजारी ने बताया कि जलझूलनी एकादशी भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप को झूला झुलाने का पर्व है। भक्त इस दिन विशेष पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन में भाग लेकर भगवान की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि इस वर्ष भी भक्तों ने अत्यधिक आस्था के साथ भाग लिया और रथ यात्रा का आनंद उठाया।

मंदिर परिसर में अन्य धार्मिक आयोजन भी किए गए। इसमें भजन-कीर्तन, कथा वाचन और प्रसाद वितरण प्रमुख रहे। भक्तगण सुबह से ही मंदिर में दर्शन करने और पूजा-अर्चना में शामिल होने के लिए पहुँचने लगे थे। आयोजन की विशेष तैयारी के तहत मंदिर परिसर में साफ-सफाई और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।

स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं ने बताया कि यह पर्व सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। बाल रूप में विराजमान भगवान को रथ में विराजमान कर आस्था के साथ खींचना एक अद्भुत अनुभव है। हजारों भक्तों की भागीदारी ने इस आयोजन को और भी भव्य बना दिया।

मंदिर के आयोजक समिति ने कहा कि जलझूलनी एकादशी न केवल भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का अवसर है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। लोग मिलजुलकर इस उत्सव में भाग लेते हैं और भक्ति भाव से भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।

इस प्रकार, चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ मंदिर में जलझूलनी एकादशी का आयोजन भक्तों के लिए अविस्मरणीय रहा। 450 किलो चांदी के रथ में विराजमान बाल स्वरूप, भक्तों की आस्था और शोभायात्रा के दृश्य ने धार्मिक वातावरण को और भी समृद्ध बना दिया। आयोजन की भव्यता और भक्तों की भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह पर्व क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण और श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत प्रिय है।

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