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इसराइल का क़तर में हमास के शीर्ष नेताओं पर हमला, अब तक जो बातें मालूम हैं

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Reuters हमले के बाद दोहा में क्षतिग्रस्त एक इमारत

इसराइल ने क़तर की राजधानी दोहा में हमास के सीनियर नेताओं को निशाना बनाकर हमला किया है.

हमास के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि वार्ताकारों की उनकी टीम को हमले में निशाना बनाया गया है.

ये टीम दोहा में है. हालांकि, इस साल जुलाई महीने के बाद से अब तक इस दल की इसराइल से कोई सीधी वार्ता नहीं हुई है.

क़तर के विदेश मंत्रालय ने इस हमले को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का 'घोर उल्लंघन' बताया है.

वहीं, इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ (आईडीएफ़) ने कहा है कि उसने "सटीक हमले" किए हैं और इसमें उन लोगों को निशाना बनाया गया है, जो सीधे तौर पर सात अक्तूबर 2023 के जनसंहार के लिए ज़िम्मेदार थे.

एक सीनियर इसराइली अधिकारी ने इसराइल की मीडिया को ये बताया है कि हमास के जिन सदस्यों को निशाना बनाया गया है उनमें ख़लील अल-हैया शामिल हैं.

वह हमास की ओर से मुख्य वार्ताकार हैं और ग़ज़ा से निर्वासित हैं. उनके अलावा हमले में जो निशाने पर आए उनमें ज़ाहर जबरीन हैं, जो वेस्ट बैंक से निर्वासित हैं.

अधिकारी ने बताया, "हम हमले के नतीजों आने का इंतज़ार कर रहे हैं. "

इसराइली सेना ने क्या बताया? image Getty Images इसराइली पीएम के कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ये पूरी तरह से इसराइल का अभियान था जिसे इसराइल ने ही अंजाम दिया

हमले के बाद आईडीएफ़ ने एक बयान जारी किया. हालांकि, इसमें ये नहीं बताया गया है कि हमले कहां किए गए हैं.

आईडीएफ़ ने एक्स पर लिखा, "आईडीएफ़ और आईएसए ने आतंकवादी संगठन हमास की सीनियर लीडरशिप को निशाना बनाते हुए सटीक हमले कए. सालों से हमास के ये सदस्य इस आतंकवादी संगठन के संचालन की अगुवाई कर रहे हैं. ये सात अक्तूबर की नृशंस हत्याओं के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं और इसराइल के ख़िलाफ़ युद्ध की योजना बनाकर उसे अंजाम दे रहे हैं."

इसराइली सेना ने इसी पोस्ट में बताया है कि हमले से पहले आम लोगों को होने वाले नुक़सान को कम करने के लिए एहतियाती कदम उठाए गए, जिनमें सटीक हथियारों का इस्तेमाल और ख़ुफ़िया जानकारी शामिल थी.

"आईडीएफ़ और आईएसए सात अक्तूबर के जनसंहार के ज़िम्मेदारों को हराने के लिए इसी तरह से अपना अभियान जारी रखेंगे."

वहीं, इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया, "आज हमास के शीर्ष आतंकवादी सरगनाओं के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई पूरी तरह से एक इसराइली अभियान था. इसकी शुरुआत इसराइल ने की, इसे इसराइल ने अंजाम दिया और इसकी पूरी ज़िम्मेदारी इसराइल लेता है."

इस बीच इसराइल के धुर-दक्षिणपंथी नेता और वित्त मंत्री बेज़ालेल स्मॉद्रिच ने कहा, "आज दोहा में हमला ये दिखाता है कि आतंकवादियों को दुनिया में कहीं भी न तो कोई छूट है और न होगी." उन्होंने हमले को सही फ़ैसला बताया.

क़तर की सख़्त प्रतिक्रिया image Reuters दोहा में हमले के बाद कई जगह धुआं दिखा

क़तर के विदेश मंत्रालय ने इसराइली हमले को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन करार देते हुए इसकी निंदा की है.

क़तर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता डॉक्टर माजिद अंसारी ने कहा कि हमले की चपेट में दोहा का एक आवासीय परिसर आया, जहां हमास की राजनीतिक शाखा के कई नेता रहते हैं.

उन्होंने कहा कि हमले अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का घोर उल्लंघन और क़तर के लिए गंभीर ख़तरा है.

बयान में कहा गया, "क़तर इस हमले की कड़ी निंदा करता है और वह ये पुष्टि करता है कि इसराइल के इस लापरवाही भरे बर्ताव और लगातार क्षेत्रीय सुरक्षा से उसकी छेड़छाड़ को बर्दाश्त नहीं करेगा."

वहीं, इसके बाद क़तर के गृह मंत्रालय ने बताया कि हमले में हमास के एक आवासीय मुख्यालय को निशाना बनाया गया है. लेकिन स्थिति अब सुरक्षित है.

अमेरिका क्या बोला?

इस बीच, व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि दोहा में इसराइली हमले से पहले ही ट्रंप प्रशासन को इस बारे में सूचना दे दी गई थी.

दरअसल, क़तर को अमेरिका के सबसे प्रमुख गैर-नेटो सहयोगी के तौर पर देखा जाता है. ऐसे में इसराइली हमले के बाद ये सवाल उठे कि अमेरिका को इसके बारे में जानकारी थी या नहीं या फिर वह खुद इसमें शामिल तो नहीं था.

ऐसा इसलिए भी क्योंकि क़तर में अमेरिका के करीब 10 हज़ार सैनिक तैनात हैं.

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ईरान ने की निंदा

इसराइली हमले के बाद ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बघेई ने सरकारी टेलीविज़न चैनल पर प्रतिक्रिया दी.

उन्होंने कहा, "ये कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन है. साथ ही ये क़तर और फ़लस्तीनी वार्ताकारों की संप्रभुता का भी हनन है. इसे क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी एक गंभीर चेतावनी के तौर पर देखा जाना चाहिए."

ईरान और इसराइल के बीच इसी साल जून के आख़िरी सप्ताह में सीज़फ़ायर का एलान हुआ था.

image Reuters दोहा में धमाके का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आ गया है अरब देशों ने जताया विरोध

हमास के अधिकारियों पर हमले के बाद मध्य पूर्व के कई देशों ने प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दी हैं.

जॉर्डन के विदेश मंत्रालय ने क़तर में इसराइली हमले को "ख़तरनाक और अस्वीकार्य उकसावे वाली कार्रवाई" करार दिया है.

कुछ ऐसे ही शब्दों में कुवैत ने भी हमले की निंदा की है. साथ ही कुवैत ने जवाबी तौर पर कतर के हर कदम का समर्थन करने पर भी ज़ोर दिया है.

संयुक्त अरब अमीरात के डिप्टी पीएम अब्दुल्लाह बिन ज़ाएद ने भी हमले की कड़ी निंदा की है.

ओमान के विदेश मंत्रालय ने देश के सुल्तान के हवाले से बयान जारी किया है. जिसमें हमले को संप्रभुता का घोर हनन बताया गया है.

क़तर का क्या है कनेक्शन?

अक्तूबर 2023 में इसराइल और हमास के बीच छिड़ी जंग के बाद से ही क़तर दोनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका में रहा है.

बीते रविवार को ही हमास ने कहा था कि उन्हें अमेरिका की ओर से ग़ज़ा में सीज़फ़ायर समझौते तक पहुंचने के लिए दिए गए कुछ आइडिया पसंद हैं और वह इनका स्वागत करता है.

सोमवार को ही इसराइल के विदेश मंत्री गिडेओन सार ने ये संकेत दिए थे कि उनका देश जंग ख़त्म करने को लेकर अमेरिका की ओर से प्रस्तावित समझौते पर तैयार है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमास को समझौते पर सहमत होने के लिए 'आख़िरी चेतावनी' दी थी.

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दोहा में हमास का प्रतिनिधिमंडल image Reuters ख़लील अल हया हमास की ओर से वार्ता के लिए क़तर में मौजूद प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई कर रहे हैं

ग़ज़ा में हमास के नेता ख़लील अल हया क़तर की राजधानी में ग़ज़ा पट्टी में चल रही जंग को लेकर चल रही वार्ता में हमास के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं.

हया के ही नेतृत्व में ही हुई बातचीत में फ़रवरी 2025 में इसराइल के साथ संघर्वविराम हुआ था. इसके अलावा अल हया मिस्र की राजधानी काहिरा में साल 2012 और साल 2014 में हुई बातचीत में शामिल थे.

अल हया का नाम हमास के साथ काफी पहले से जुड़ा रहा है और उन्हें हमास के प्रमुख नेताओं में से एक माना जाता है.

ख़लील इब्राहिम अल हया अपने समर्थकों के बीच 'अबू ओसामा' के नाम से भी मशहूर हैं. उनका जन्म ग़ज़ा पट्टी में जनवरी 1960 में हुआ. उनकी अच्छी पढ़ाई लिखाई के कारण उन्हें हमास के रूढिवादी नेताओं में गिना जाता है.

अल हया ने ग़ज़ा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी से 1983 में ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल की और उन्होंने मास्टर्स की डिग्री यूनिवर्सिटी ऑफ़ जॉर्डन से 1989 में प्राप्त की. सूडान में 1997 में उन्हें पवित्र कुरान और इस्लामिक साइंस पर शोध के लिए डॉक्टरेट की उपाधि से नवाज़ा गया.

अल हया को फ़लस्तीन में उनके राजनीतिक और सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता है. उन्होंने फ़लस्तीनी लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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