अगली ख़बर
Newszop

दुनिया से पूरी तरह अलग-थलग, अब भी तन्हा कैसे रह रहे हैं ये लोग

Send Push
image Fenamad पेरू में अमेज़न के जंगल में घुमक्कड़ जनजातियों के सामने कई तरह के ख़तरे हैं और क़रीब के गांव वाले उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं

टोमास एनेज़ डॉस सैंटोस पेरू में अमेज़न के जंगल में एक छोटी सी खुली जगह पर काम कर रहे थे. तभी उन्होंने किसी के क़दमों की आहट सुनी.

उन्हें एहसास हुआ कि वो चारों ओर से घिर चुके हैं, और वो स्तब्ध रह गए.

टोमास बताते हैं, "एक शख़्स तीर से निशाना साधकर खड़ा था. उसने मुझे किसी तरह देख लिया था कि मैं यहां पर हूं. फिर मैं भागने लगा."

टोमास उस वक़्त माश्को पिरो जनजाति के सामने आ गए थे.

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएयहाँ क्लिककरें

न्यूएवा ओसेनिया नामक छोटे गाँव में टोमास रहते हैं. वह दशकों से इन खानाबदोश जनजातियों के पड़ोसी रहे हैं, जो बाहरी लोगों से संपर्क से बचते हैं. हालांकि हालिया समय तक टोमास ने शायद ही पहले कभी उन लोगों को देखा था.

माश्को पिरो ने पिछले सौ साल से दुनिया से कटकर रहना पसंद किया है. वे लंबे धनुष और तीर से शिकार करते हैं और अपनी सभी ज़रूरतों के लिए अमेज़न वर्षा वनों (रैन फॉरेस्ट) पर निर्भर रहते हैं.

टोमास याद करते हैं, "उन्होंने चक्कर लगाना और सीटी बजाना शुरू कर दिया, जानवरों और अलग-अलग पक्षियों की आवाज़ें निकालने लगे."

"मैं कहता रहा 'नोमोले' (भाई). फिर वे इकट्ठा हो गए. उन्हें लगा कि हम क़रीब हैं, तो हम नदी की ओर बढ़े और दौड़ पड़े."

अमेज़नः पर्यटन से आदिवासियों को ख़तरा !

काफ़ी दिलचस्प है न्यूज़ीलैंड के खोजे जाने की कहानी

image BBC न्यूएवा ओसेनिया मछुआरों का एक छोटा सा गाँव है

मानवाधिकार संगठन 'सर्वाइवल इंटरनेशनल' की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में कम से कम 196 ऐसे समूह बचे हैं जिन्हें 'अनकॉन्टैक्टेड ग्रुप' कहा जाता है यानी उनका बाहरी दुनिया से संपर्क नहीं है.

माना जाता है कि माश्को पिरो इनमें सबसे बड़ा समूह है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सरकारें इनको बचाने के लिए और कदम नहीं उठातीं, तो अगले दशक में इनमें से आधे समूह समाप्त हो सकते हैं.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लकड़ी काटने, माइनिंग और तेल की खोज के लिए खुदाई करने से इन जनजातियों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है.

अनकॉन्टैक्टेड जनजातियाँ सामान्य बीमारियों के प्रति बेहद संवेदनशील होती हैं. इसलिए रिपोर्ट में कहा गया है कि ईसाई मिशनरियों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की तरफ से संपर्क करना भी इनके लिए एक बड़ा ख़तरा बन सकता है.

'वे जैसे जी रहे हैं वैसे ही जीने दीजिए' image BBC टोमास कहते हैं, "हम उनकी संस्कृति नहीं बदल सकते"

स्थानीय लोगों के अनुसार, हाल के समय में माश्को पिरो के लोग न्यूएवा ओसेनिया गाँव में पहले से कहीं ज़्यादा आने लगे हैं.

यह 7-8 परिवारों के एक मछुआरा समुदाय का गांव है. यह पेरू में अमेज़न के मध्य में ताउहामानु नदी के किनारे ऊँचाई पर मौजूद है, और यहां से सबसे क़रीब पड़ने वाली बस्ती भी नाव से 10 घंटे की दूरी पर है.

इस क्षेत्र को अनकॉन्टैक्टेड ट्राइब्स के लिए संरक्षित (रिज़र्व) इलाक़े के रूप में मान्यता नहीं दी गई, और यहाँ लकड़ी काटने वाली कंपनियाँ काम करती हैं.

टोमास कहते हैं कि कई बार लकड़ी काटने वाली मशीनों की आवाज़ दिन-रात सुनाई देती है, और माश्को पिरो के लोग अपने जंगल को कटते देख रहे हैं.

न्यूएवा ओसेनिया के लोग कहते हैं कि वे दुविधा में हैं. वे माश्को पिरो जनजातियों के तीरों से डरते हैं, लेकिन वे जंगल में रहने वाले अपने "भाइयों" के प्रति बहुत सम्मान भी रखते हैं और उनकी रक्षा करना चाहते हैं.

टोमास कहते हैं, "जैसे वे जी रहे हैं, उन्हें वैसे ही जीने दीजिए, हम उनकी संस्कृति नहीं बदल सकते. इसीलिए हम उनसे दूरी बनाकर रखते हैं."

न्यूएवा ओसेनिया के लोग माश्को पिरो की आजीविका को हो रहे नुक़सान, हिंसा के ख़तरे और इस आशंका से चिंतित हैं कि लकड़ी काटने वाले लोग उन्हें ऐसी बीमारियों के संपर्क में ला सकते हैं जिनसे लड़ने के लिए उनके शरीर में कोई प्रतिरोधक क्षमता नहीं है.

जब हम गाँव में थे, माश्को पिरो ने एक बार फिर इलाक़े में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. इलाक़े में अपनी दो साल की बेटी के साथ रहने वाली एक युवा माँ लेटिशिया रोड्रिगेज लोपेज जंगल में फल चुन रही थीं, जब उन्होंने माश्को पिरो की आवाज़ सुनी.

उन्होंने बताया, "हमने चिल्लाने की आवाज़ें सुनीं, लोगों की चीखें. बहुत सारे लोगों की चीखें. ऐसा लग रहा था जैसे पूरा समूह चिल्ला रहा हो.

यह पहली बार था जब उन्होंने माश्को पिरो को देखा और वे भाग गईं. एक घंटे बाद भी डर की वजह से उनके सिर में तेज़ दर्द हो रहा था.

लेटिशिया कहती हैं, "क्योंकि यहाँ लकड़ी काटने वाले और कंपनियाँ भी जंगल को काट रही हैं, शायद इसलिए डर की वजह से वे (माश्को पिरो) भाग रहे हैं और हमारे पास आ जाते हैं."

"हमें नहीं पता कि वे हमें देखकर कैसा व्यवहार करेंगे. यही बात मुझे डराती है."

  • डीलिस्टिंग: धर्म परिवर्तन करने वाले अनुसूचित जनजाति के लोग क्या आरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगे?
  • समान नागरिक संहिता का विरोध क्यों कर रहे हैं आदिवासी?
  • त्रिपुरा के 12 लाख आदिवासियों को टिपरा मोथा और केंद्र सरकार के समझौते से क्या मिलेगा?
बाहरी संपर्क से जनजातियों को ख़तरा image Fenamad साल 2024 में माश्को पिरो जनजातियों की ली हुई एक तस्वीर

साल 2022 में, दो लकड़ी काटने वालों पर माश्को पिरो ने उस समय हमला किया, जब वे मछली पकड़ रहे थे.

एक व्यक्ति के पेट में तीर लगा — वह बच गया, लेकिन दूसरा व्यक्ति कुछ दिनों बाद मरा हुआ पाया गया, उसके शरीर में तीरों के 9 घाव थे.

पेरू सरकार की नीति है कि अलग-थलग रह रहे स्थानीय लोगों से कोई संपर्क नहीं किया जाए — उनके साथ बातचीत शुरू करना गैरकानूनी है.

यह नीति ब्राज़ील में शुरू हुई थी, जहाँ दशकों तक स्वदेशी अधिकार समूहों ने अभियान चलाया. उन्होंने देखा कि इन जनजातियों से पहली बार संपर्क होते ही बीमारियों, ग़रीबी और कुपोषण के कारण पूरा समुदाय ख़त्म हो गया.

1980 के दशक में, जब पेरू के नाहुआ लोगों ने पहली बार बाहरी दुनिया से संपर्क किया, तो कुछ ही वर्षों में उनकी 50% आबादी खत्म हो गई.

1990 के दशक में, मुरुहानुआ लोगों का भी यही हाल हुआ.

पेरू के स्वदेशी अधिकार संगठन 'फेमनाड' के इसराइल अक्विसे कहते हैं, "बगैर बाहरी संपर्क के रह रहे ये लोग बहुत संवेदनशील होते हैं."

वो कहते हैं, "महामारी के नज़रिए से देखें तो कोई भी संपर्क उनमें बीमारियाँ फैला सकता है. यहां तक कि बहुत सामान्य सा संपर्क भी ऐसे लोगों को ख़त्म कर सकता है."

"सांस्कृतिक रूप से भी, कोई भी संपर्क या हस्तक्षेप उनके संपूर्ण सामाजिक जीवन और स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है."

'सरकार ने मुश्किल हालात में छोड़ा' image BBC एंटोनियो एक कंट्रोल पोस्ट पर तैनात हैं जो इन जनजातियों पर नज़र रखते हैं

बाहरी लोगों के संपर्क से दूर रहने वाली जनजातियों के पड़ोसियों के लिए 'बिना संपर्क के रहना' मुश्किल हो सकता है.

टोमास हमें उस जंगल की खुली जगह पर ले जाते हैं जहाँ उन्होंने माश्को पिरो को देखा था. वो रुकते हैं, आवाज़ निकालते हैं और फिर चुपचाप इंतज़ार करते हैं.

वो कहते हैं, "अगर वो जवाब देते, तो हम वापस लौट जाते हैं. हम केवल कीड़ों और पक्षियों की आवाज़ें सुन सकते हैं. वे यहाँ नहीं हैं."

टोमास को लगता है कि सरकार ने न्यूएवा ओसेनिया के निवासियों को इस मुश्किल हालात से निपटने के लिए अकेला छोड़ दिया है.

वो अपने बगीचे में माश्को पिरो के लिए खाने की चीज़ें उगाते हैं. यह एक सुरक्षा उपाय है जो उन्होंने और अन्य ग्रामीणों ने अपने पड़ोसियों की मदद और अपनी सुरक्षा के लिए अपनाया है.

वो कहते हैं, "काश मैं उनकी ज़ुबान जानता और कह पाता, 'लो ये केले हैं, ये एक तोहफा है. आप इन्हें बेझिझक से ले सकते हैं. लेकिन प्लीज़ मुझे मत मारो'."

कंट्रोल पोस्ट image Fenamad कंट्रोल पोस्ट से संपर्क करते माश्को पिरो

इस घने जंगल की दूसरी तरफ क़रीब 200 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में हालात बिल्कुल अलग है. वहाँ, मानु नदी के किनारे, माश्को पिरो लोग एक ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जिसे आधिकारिक रूप से फ़ॉरेस्ट रिज़र्व एरिया के रूप में मान्यता दी गई है.

पेरू का संस्कृति मंत्रालय और फेमनाड ने यहां 'नोमोले कंट्रोल पोस्ट' बनाया है, जहाँ आठ एजेंट तैनात हैं.

यह चौकी साल 2013 में स्थापित की गई थी, जब माश्को पिरो और स्थानीय गाँवों के बीच संघर्ष में कई लोग मारे गए थे.

इस नियंत्रण चौकी के प्रमुख एंटोनियो त्रिगोसो हिडाल्गो की ज़िम्मेदारी है कि दोबारा ऐसा न हो.

माश्को पिरो यहां नियमित रूप से दिखाई देते हैं — कभी-कभी तो एक ही हफ़्ते में कई बार.

वे न्यूएवा ओसेनिया के पास रहने वाले लोगों से अलग समूह हैं, और एजेंटों को नहीं लगता कि वे एक-दूसरे को जानते हैं.

मानु नदी के पार एक छोटी सी कंकरीली तट की ओर इशारा करते हुए एंटोनियो कहते हैं, "वे हमेशा एक ही जगह से बाहर आते हैं. वहीं से वे आवाज़ लगाते हैं. वे केले, कसावा या गन्ना माँगते हैं. अगर हम जवाब नहीं देते, तो वे पूरे दिन वहीं बैठे रहते हैं."

एजेंट कोशिश करते हैं कि ऐसे हालात न पैदा हों, ताकि पर्यटक या स्थानीय नावों को वहाँ से गुज़रते समय कोई परेशानी न हो. इसलिए वे आमतौर पर जनजातियों की मांग पूरी कर देते हैं.

  • 'नए भगवान' को पूजने को लेकर क्यों असमंजस में हैं अरुणाचल के आदिवासी?
  • ‘आदिवासी जोड़े को कैसे दिया जाए तलाक़’, अदालत ने उलटा वकील से पूछा सवाल
  • बीबीसी पड़ताल: फ़ेसबुक पर बिक रही अमेज़न के जंगलों की ज़मीन
जानवरों के नाम पर रखते हैं अपना नाम image BBC बंदरों के दांत से बनाई गई गले की हार

इस कंट्रोल पोस्ट में एक छोटा सा बगीचा है, जहां एजेंट खाना उगाते हैं. जब वह ख़त्म हो जाता है, तो वे पास के गाँव से सामान माँगते हैं.

अगर वह भी उपलब्ध नहीं होता, तो एजेंट माश्को पिरो से कहते हैं कि कुछ दिनों बाद वापस आएं.

अब तक यह तरीका काम कर रहा है, और हाल ही में कोई बड़ा संघर्ष नहीं हुआ है.

एंटोनियो नियमित रूप से लगभग 40 लोगों पर नज़र रखते हैं, जिनमें अलग-अलग परिवारों के पुरुष, महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं.

वे अपने नाम जानवरों के नाम पर रखते हैं.

इस समूह के मुखिया का नाम- कामोटोलो (मधुमक्खी) है. एजेंटों का कहना है कि वह एक सख्त इंसान हैं और कभी मुस्कुराते नहीं हैं.

एक अन्य नेता का नाम टकटको (गिद्ध) है, वो मज़ाकिया हैं, खूब हँसते हैं और एजेंटों की चुटकी लेते हैं.

इनमें एक युवा महिला हैं योमाको (ड्रैगन). एजेंटों का कहना है कि उनका सेंस ऑफ़ ह्यूमर अच्छा है.

माश्को पिरो को बाहरी दुनिया में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है, लेकिन वे उन एजेंटों के निजी जीवन में रुचि लेते हैं जिनसे वे मिलते हैं.

वे उनके परिवारों और उनके रहने की जगहों के बारे में पूछते हैं.

जब एक एजेंट गर्भवती हुई और मैटरनिटी लीव पर गई, तो माश्को पिरो बच्चे के खेलने के लिए एक रैटल (गले की हार) लाए, जो हाउलर बंदर के दांत से बनाया गया था.

वे एजेंटों के कपड़ों में रुचि रखते हैं, ख़ासकर लाल या हरे रंग के स्पोर्ट्स-क्लॉथ्स में.

एंटोनियो कहते हैं, "जब हम उनके पास जाते हैं, तो हम पुराने, फटे हुए कपड़े पहनते हैं जिनमें बटन नहीं होते. ताकि वे कपड़े न ले जाएं."

नियंत्रण चौकी के एजेंट एडुआर्डो पैंचो पिजारो कहते हैं, "पहले वे अपने पारंपरिक कपड़े पहनते थे. कीटों के रेशों से बने सुंदर स्कर्ट, जिन्हें वे ख़ुद तैयार करते थे. लेकिन अब, जब पर्यटकों की नावें गुज़रती हैं, तो कुछ लोग उनसे कपड़े या जूते ले लेते हैं."

लेकिन जब भी टीम जंगल में उनके जीवन के बारे में पूछती है, माश्को पिरो बातचीत बंद कर देते हैं.

एंटोनियो कहते हैं, "एक बार मैंने पूछा कि वे आग कैसे जलाते हैं? तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे पास लकड़ी है, तुम्हें पता है. मैंने जानने के लिए ज़ोर दिया तो कहने लगे कि तुम्हारे पास तो ये सारी चीज़ें हैं — फिर जानना क्यों चाहते हो?"

अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक दिखाई नहीं देता, तो एजेंट पूछते हैं कि वह कहाँ है.

अगर माश्को पिरो कहते हैं, "पूछो मत," तो एजेंट मान लेते हैं कि वह व्यक्ति मर चुका है.

कहां से आए हैं ये लोग image Fenamad ये जनजाति कहां से आई है इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है

सालों के संपर्क के बावजूद, एजेंट अभी भी नहीं जानते कि माश्को पिरो कैसे रहते हैं या वे जंगल में ही क्यों रहना चाहते हैं.

ऐसा माना जाता है कि वे उन आदिवासी लोगों के वंशज हो सकते हैं जो तथाकथित "रबर बैरन" शोषण और जनसंहार से बचने के लिए 19वीं सदी के अंत में घने जंगलों में भाग गए थे.

विशेषज्ञों का मानना है कि माश्को पिरो शायद पेरू के दक्षिण-पूर्वी हिस्से के यीन आदिवासी समुदाय से क़रीबी रखते हैं.

वे उसी भाषा का एक पुराना रूप बोलते हैं, जिसे यीन समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एजेंट सीख पाए हैं.

लेकिन यीन लोग लंबे समय से नदी में नौकायन करने वाले, किसान और मछुआरे रहे हैं, जबकि माश्को पिरो यह सब भूल चुके हैं.

हो सकता है कि उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए खानाबदोश और शिकार जमा कर रखने वाली जीवनशैली अपनाई हो.

एंटोनियो कहते हैं, "अब मैं समझता हूँ कि वे किसी क्षेत्र में कुछ समय के लिए रुकते हैं, एक शिविर लगाते हैं, और पूरा परिवार वहाँ इकट्ठा होता है. जब वे उस जगह के आसपास सब कुछ शिकार कर लेते हैं, तो दूसरी जगह चले जाते हैं."

फेमनाड के इसराइल अक्विसे कहते हैं कि अब तक 100 से अधिक लोग विभिन्न समयों पर नियंत्रण चौकी पर आ चुके हैं.

"वे अपने भोजन में बदलाव लाने के लिए केले और कसावा माँगते हैं, लेकिन कुछ परिवार इसके बाद महीनों या वर्षों तक गायब हो जाते हैं."

उनका कहना है, "वे बस कहते हैं कि 'मैं कुछ महीनों के लिए जा रहा हूँ, फिर वापस आऊँगा.' और फिर अलविदा कह देते हैं."

इस क्षेत्र के माश्को पिरो अच्छी तरह से संरक्षित हैं, लेकिन सरकार एक सड़क बना रही है जो इस क्षेत्र को अवैध खनन वाले इलाक़े से जोड़ देगी.

लेकिन एजेंटों के लिए यह स्पष्ट है कि माश्को पिरो बाहरी दुनिया से जुड़ना नहीं चाहते हैं.

एंटोनियो कहते हैं, "इस पोस्ट पर मेरे अनुभव से मुझे पता चला है कि वे 'सभ्य' नहीं बनना चाहते. शायद बच्चे ऐसा चाहें, जब वे बड़े हों और हमें कपड़े पहने देखें. शायद 10 या 20 साल में. लेकिन वयस्क नहीं. वे तो हमें यहाँ भी नहीं चाहते."

साल 2016 में, सरकार ने एक विधेयक पारित किया था जिसमें माश्को पिरो के आरक्षित क्षेत्र को बढ़ाकर न्यूएवा ओसेनिया को शामिल करने का प्रस्ताव था. हालांकि, यह विधेयक अब तक कानून नहीं बन पाया है.

टोमास कहते हैं, "हमें चाहिए कि वे भी हमारी तरह आज़ाद रहें. हम जानते हैं कि वे वर्षों तक बहुत शांतिपूर्ण जीवन जीते रहे हैं, और अब उनके जंगल ख़त्म किए जा रहे हैं — नष्ट किए जा रहे हैं."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें एक्स, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

  • छत्तीसगढ़ः आदिवासियों के आरक्षण पर क्यों उठाए जा रहे हैं सवाल
  • ब्राज़ील के मूल निवासी ही अमेज़न को बचा सकते हैं? - दुनिया जहान
  • फ़ेसबुक अमेज़न वर्षा वन की ग़ैर-क़ानूनी बिक्री पर कार्रवाई करेगा
image
न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें