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पुरुषों की तुलना में महिलाओं को एसी में ज़्यादा ठंड क्यों लगती है

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Getty Images अक़्सर यह बहस होती है कि एसी में महिला या पुरुष किसे ज़्यादा ठंड लगती है (सांकेतिक तस्वीर)

आपने घर या दफ़्तर में एक बात ज़रूर देखी होगी. महिलाओं और पुरुषों के बीच हमेशा इस बात पर असहमति होती है कि कमरे में एसी किस तापमान पर चलना चाहिए.

जहां पुरुष तापमान कम करने की बात करते हैं, वहीं महिलाएं यह कहते हुए तापमान बढ़ाने पर ज़ोर देती हैं कि पहले से ही बहुत ठंड है.

ऐसा बार-बार क्यों होता है? क्या महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज़्यादा ठंड महसूस करती हैं?

क्या महिलाओं में ठंड सहने की क्षमता कम होती है? या यह सिर्फ़ एक एहसास है?

इस विषय पर कई शोध किए गए हैं कि महिलाएं पुरुषों से ज़्यादा ठंड क्यों महसूस करती हैं.

साइंस डायरेक्ट और नेचर जैसी विज्ञान की मशहूर पत्रिकाओं में प्रकाशित कई शोध पत्रों में यह निष्कर्ष निकला है कि स्वभाव से महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज़्यादा ठंड महसूस करती हैं.

नेचर डॉट कॉम पर प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के अनुसार, महिलाएं उस तापमान पर सहज महसूस करती हैं जो पुरुषों के लिए आरामदायक तापमान से लगभग 2.5 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा होता है, यानी लगभग 24 से 25 डिग्री सेल्सियस.

image Getty Images क्या मेटाबॉलिक रेट इसका कारण है?

'द कन्वर्सेशन' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं का मेटाबॉलिक रेट पुरुषों की तुलना में कम होता है. जिससे ठंड के समय शरीर की गर्मी पैदा करने की क्षमता घट जाती है.

रिपोर्ट के मुताबिक़, इसी वजह से तापमान कम होने पर महिलाएं ज़्यादा ठंड महसूस करती हैं.

साइंस डायरेक्ट डॉट कॉम पर प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, पुरुषों का मेटाबॉलिक रेट ज़्यादा होता है. इसलिए वे सामान्य तौर पर शरीर में ज़्यादा गर्मी महसूस करते हैं और गर्म तापमान पर कम आराम महसूस करते हैं.

इंग्लैंड के वॉरविक मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर पॉल थॉर्नले के मुताबिक़, "पुरुषों और महिलाओं के बीच औसत मेटाबॉलिक रेट और शरीर में गर्मी पैदा करने की क्षमता में अंतर ही वह कारण हो सकता है. जिसकी वजह से दोनों के लिए आरामदायक तापमान अलग होता है."

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image Getty Images जब व्यक्ति आराम कर रहा होता है तो बीएमआर कम होता है, जबकि एक्सरसाइज जैसी गतिविधियों के दौरान यह ज़्यादा होता है (सांकेतिक तस्वीर) मेटाबॉलिक रेट क्या है?

मेटाबॉलिक रेट वह मात्रा है, जितनी ऊर्जा आपका शरीर एक निश्चित समय अवधि में उपयोग करता है.

अपोलो ग्रुप ऑफ़ हॉस्पिटल्स के विज़िटिंग कंसल्टेंट डॉ. बी. सुजीत कुमार कहते हैं कि बेसल मेटाबॉलिक रेट (बीएमआर) वह ऊर्जा है जो हमारा शरीर आराम की स्थिति में बुनियादी जीवन-निर्वाह करने वाले कार्यों के लिए ख़र्च करता है.

उन्होंने बताया कि यह शरीर की ऊर्जा ज़रूरतों, पोषण और वज़न कंट्रोल करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

हर व्यक्ति का मेटाबॉलिक रेट अलग होता है. यह आनुवंशिकी (जेनेटिक्स), मेटाबॉलिज़्म और लाइफ़स्टाइल जैसी चीज़ों पर निर्भर करता है.

आराम की स्थिति में बीएमआर कम होता है, जबकि एक्सरसाइज जैसी गतिविधियों के दौरान यह ज़्यादा होता है.

आराम के समय शरीर सिर्फ़ ज़रूरी अंगों जैसे दिल, फेफड़े और दिमाग़ के सही ढंग से काम करने के लिए ऊर्जा का उपयोग करता है.

मेटाबॉलिक रेट को निम्नलिखित तीन तरीकों से मापा जाता है.

· ऑक्सीजन की खपत

· कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन

· गर्मी का उत्पादन

image Getty Images क्या हार्मोन भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं?

द कन्वर्सेशन की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं में पाए जाने वाले हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन शरीर के तापमान और त्वचा के तापमान को प्रभावित करते हैं.

डॉ. सुजीत कुमार ने बताया कि जब शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ता है तो ब्लड वेसल्स फैल जाती हैं, जिससे कुछ महिलाओं को ठंड महसूस हो सकती है.

वहीं प्रोजेस्टेरोन हार्मोन त्वचा की ब्लड वेसल्स को संकुचित कर देता है. इसका मतलब है कि शरीर के बाहरी हिस्सों में कम ख़ून पहुंचता है और आंतरिक अंगों में गर्मी बनी रहती है, जिससे महिलाएं और ठंड महसूस करती हैं.

यह हार्मोनल संतुलन हर महीने मेंसुरेशन साइकिल के साथ बदलता रहता है.

द कन्वर्सेशन की रिपोर्ट के मुताबिक़, इन हार्मोनों की वजह से महिलाओं के हाथ, पैर और कान पुरुषों की तुलना में लगभग तीन डिग्री सेल्सियस ठंडे रहते हैं.

ओव्यूलेशन के एक सप्ताह बाद जब अंडाशय से अंडे निकलते हैं, प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ जाता है. इस समय शरीर के मुख्य अंगों (छाती और कमर के बीच वाले हिस्से) का तापमान ज़्यादा रहता है.

डॉ. सुजीत कुमार के अनुसार, इसका मतलब है कि इस अवधि में महिलाएं बाहरी तापमान से ज़्यादा प्रभावित होती हैं.

हालांकि, डॉ. सुजीत कुमार का कहना है कि मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के प्रभाव कम हो जाते हैं. जिससे हॉट फ्लैशेस यानी अचानक गर्मी लगना और चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण बढ़ जाते हैं.

image Getty Images (प्रतीकात्मक तस्वीर) पुरुषों और महिलाओं की शरीर संरचना में अंतर

डॉ. सुजीत कुमार कहते हैं, "पुरुषों में आमतौर पर मांसपेशियां अधिक और फैट कम होता है इसलिए उनके शरीर में गर्मी ज़्यादा बनती है."

जब मांसपेशियों की मात्रा अधिक होती है. तो बेसल मेटाबॉलिक रेट (बीएमआर) भी अधिक होता है.

वहीं महिलाओं में आमतौर पर मांसपेशियां कम और वसा अधिक होती है. जिसके कारण शरीर में गर्मी कम बनती है और वे ठंड ज़्यादा महसूस करती हैं.

उन्होंने कहा कि शरीर का तापमान पुरुषों और महिलाओं में अलग होता है और बीएमआर मांसपेशियों की मात्रा के आधार पर तय होता है.

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क्या जानवरों के साथ भी ऐसा होता है?

डॉ. सुजीत कुमार ने कहना है कि जानवर दो प्रकार के होते हैं, ठंडे खून वाले जानवर और गर्म ख़ून वाले जानवर.

वह कहते हैं, "छोटे जानवरों का मेटाबॉलिक रेट अधिक होता है और बड़े जानवरों का मेटाबॉलिक रेट कम होता है."

हालांकि यह भी सच है कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ठंड ज़्यादा क्यों लगती है, इस पर अभी तक वैज्ञानिक शोध सीमित हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस विषय पर और अध्ययन की ज़रूरत है.

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