Next Story
Newszop

'शोले' में अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर बनने के लिए असरानी ने कैसे ली थी हिटलर से प्रेरणा?

Send Push
image BBC बीबीसी हिंदी की ख़ास पेशकश 'कहानी ज़िंदगी की' में इस बार के मेहमान एक्टर और डायरेक्टर असरानी

"अटेंशन! हमने कहा अटेंशन! क़ैदियों! कान खोलकर सुन लो, हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं..." ये डायलॉग फ़िल्म शोले के उन डायलॉग्स में से एक है, जिसे आज भी बेहद पसंद किया जाता है.

सिर्फ़ ये डायलॉग ही नहीं, बल्कि इस फ़िल्म में 'अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर' का किरदार निभाने वाले असरानी को भी दर्शक बहुत पसंद करते हैं.

असरानी या गोवर्धन कुमार असरानी, जो तमाम फ़िल्मों में तरह-तरह के किरदार निभा चुके हैं और कई फ़िल्में डायरेक्ट भी कर चुके हैं.

राजस्थान के जयपुर में पले-बढ़े असरानी ने फ़िल्मी दुनिया का सफ़र कैसे शुरू किया? एक्टिंग और कॉमेडी की उनकी समझ क्या है? इन सवालों सहित अपनी ज़िंदगी के कई अहम पलों को असरानी ने बीबीसी हिंदी की ख़ास पेशकश 'कहानी ज़िंदगी की' में इरफ़ान के साथ साझा किया.

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएयहाँ क्लिककरें

असरानी का शुरुआती जीवन image Getty Images असरानी ने पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग की पढ़ाई की

असरानी बताते हैं कि उनके पिता जयपुर में कार्पेट कंपनी के मैनेजर थे. असरानी की पैदाइश से लेकर स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई जयपुर में हुई.

वो कहते हैं कि उन्होंने जयपुर का बहुत अच्छा माहौल देखा है. वे रोज़ राजा मानसिंह को देखते थे और उनकी जय-जयकार सुनते थे.

असरानी ने मैट्रिक पास करने के बाद ही फ़िल्मों में जाने का मन बना लिया था. हालांकि, तब कोशिश करने के बाद भी उनके फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत नहीं हो सकी थी.

इसके बाद उन्होंने तय किया कि वो कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में एक्टिंग सीखेंगे.

उन्होंने दो-तीन साल आकाशवाणी, जयपुर में भी काम किया.

इसके बाद उन्होंने पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया और इस तरह उनकी एक्टिंग की पढ़ाई शुरू हुई.

  • 'धड़क 2' में जाति को लेकर क्या दिखाया गया है जिसकी हो रही चर्चा
  • तीजन बाई: पंडवानी के शिखर पर पहुंचने वाली पहली गायिका को क्या-क्या सहना पड़ा
  • सई परांजपे: 'महिला निर्देशक जो संवेदनशीलता ला सकती हैं वो पुरुष निर्देशक नहीं ला सकते'
एक्टिंग एक साइंस है: असरानी image Getty Images/BBC

पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में असरानी को मशहूर एक्टिंग टीचर रोशन तनेजा ने पढ़ाया. असरानी कहते हैं कि रोशन तनेजा से मुलाक़ात होने के बाद एक्टिंग को लेकर उनकी तमाम ग़लतफहमियां दूर होती गईं.

वो कहते हैं, "फ़िल्म इंस्टीट्यूट पहुंचने के बाद पता चला कि एक्टिंग के पीछे मेथड होते हैं. ये प्रोफ़ेशन किसी साइंस की तरह है. आपको लैब में जाना पड़ेगा, एक्सपेरिमेंट्स करने पड़ेंगे."

असरानी कहते हैं कि उन्हें समझ आया कि एक्टिंग में आउटर मेक-अप के अलावा इनर मेक-अप भी बहुत ज़रूरी है.

असरानी एक्टिंग में एक्टर मोतीलाल से मिले एक सबक का भी ज़िक्र करते हैं.

वो बताते हैं, "एक बार एक्टर मोतीलाल गेस्ट के तौर पर पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट आए थे. मेरी एक्टिंग की छोटी सी एक्सरसाइज़ देखकर उन्होंने मुझसे पूछा, तुम राजेंद्र कुमार की फ़िल्में बहुत देखते हो. उनकी कॉपी कर रहे हो. हमें फ़िल्मों में कॉपी नहीं चाहिए."

असरानी कहते हैं, "ये बहुत बड़ा सबक था. मोतीलाल के कहने का मतलब था कि तुम्हारे अंदर जो टैलेंट है, उसे बाहर निकालो."

असरानी के करियर की शुरुआत image Getty Images फ़िल्म 'गुड्डी' में एक छोटे से रोल से हुई थी असरानी के फ़िल्मी करियर की शुरुआत

असरानी बताते हैं कि पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में एडिटिंग सिखाने के लिए डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी आते थे. एक दिन उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी से अपने लिए चांस मांगा था. हालांकि, उस दिन कोई बात आगे नहीं बढ़ी थी.

कुछ दिनों बाद ऋषिकेश मुखर्जी 'गुड्डी' फिल्म में गुड्डी के रोल के लिए एक लड़की की तलाश में फ़िल्म इंस्टीट्यूट आए. ऋषिकेश मुखर्जी ने असरानी से जया भादुरी के बारे में पूछा और उन्हें बुलाने के लिए कहा, जो वहीं पढ़ती थीं.

ऋषिकेश मुखर्जी के साथ उनकी टीम आई थी, जिनमें राइटर गुलज़ार भी थे. असरानी बताते हैं कि ऋषिकेश मुखर्जी जया भादुरी से बात करते-करते आगे बढ़ गए, तो उन्होंने गुलज़ार से अपने लिए छोटे-मोटे रोल की बात की.

गुलज़ार ने उन्हें गुड्डी फ़िल्म में ही एक छोटे से रोल के बारे में बताया. इसके बाद असरानी ने ऋषिकेश मुखर्जी से वही रोल मांगा और आख़िरकार बाद में उन्हें वो रोल मिल गया.

गुड्डी में छोटे से रोल का असरानी को फ़ायदा मिला.

वो कहते हैं, "फ़िल्म हिट हो गई. तब मनोज कुमार की नज़र मुझ पर पड़ गई. उनको लगा कि इसको भी ले सकते हैं, ऐसे करते-करते चार-पांच फ़िल्में मिल गईं और यहां से मेरा करियर शुरू हुआ."

  • 'अब सबकी चोरी पकड़ी जा रही', फ़िल्मों की नकल और ओटीटी की तारीफ़ में बोलीं रत्ना पाठक
  • 'हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री शापित है...' सुरेश वाडकर ने ऐसा क्यों कहा- कहानी ज़िंदगी की
  • 'बाज़ार' फ़िल्म के बाद किससे डर गई थीं सुप्रिया पाठक- कहानी ज़िंदगी की
कॉमेडी में टाइमिंग का महत्व image Getty Images/BBC

असरानी कहते हैं कि उन्होंने किशोर कुमार, महमूद, जॉनी वॉकर जैसे एक्टरों से सीखा कि कॉमेडी में टाइमिंग क्या होती है.

वो कहते हैं, "मैंने किशोर कुमार को देखा. वो थे तो हीरो ही, मगर जो टाइमिंग थी उनकी कॉमेडी की, वो कमाल थी."

असरानी कहते हैं कि कॉमेडी में टाइमिंग बहुत ज़रूरी है, इसके बगैर कॉमेडी बेकार है.

वो कहते हैं, "अगर आपने जो भी डायलॉग बोला, उसकी टाइमिंग निकल गई, तो फ़्लैट हो जाएगा, ऑडिएंस बिल्कुल रिएक्ट नहीं करेगी, हँसेगी भी नहीं."

इसके अलावा, असरानी बताते हैं कि एक फ़िल्म में साथ काम करने के दौरान अशोक कुमार ने उन्हें डायलॉग को नेचुरल बनाने की कला सीखने की सलाह दी थी.

शोले का जेलर बनाने के लिए दी गई थी हिटलर की मिसाल image Getty Images/BBC

फ़िल्म शोले में अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर का किरदार बहुत हिट हुआ, इसे निभाने वाले असरानी कहते हैं कि इस रोल के लिए उन्हें हिटलर की मिसाल दी गई थी.

वो बताते हैं कि राइटर सलीम-जावेद (सलीम ख़ान और जावेद अख़्तर) और डायरेक्टर-प्रोड्यूसर रमेश सिप्पी ने उन्हें एक दिन मिलने के लिए बुलाया था. तब उन्हें शोले फ़िल्म या जेलर के किरदार के बारे में कुछ नहीं पता था.

उन्हें बताया गया कि एक जेलर का किरदार है, जो ख़ुद को बहुत होशियार समझता है, लेकिन वो वैसा है नहीं, इसलिए उसे शोऑफ़ करना पड़ता है कि वो बहुत बढ़िया जेलर है.

असरानी कहते हैं, "उन्होंने पूछा, 'कैसे करेंगे इसको?' मैंने कहा कि जेलर के कपड़े पहन लेंगे. उन्होंने कहा, 'नहीं'. उन्होंने सेकंड वर्ल्ड वॉर की किताब खोली, उसमें हिटलर के नौ पोज़ थे."

हिटलर के पोज़ देखकर असरानी को लगा कि उन्हें हिटलर का रोल करना है, फ़िर उन्हें समझाया गया कि उन्हें हिटलर के बोलने के तरीके पर गौर करना है.

वो कहते हैं, "हिटलर की आवाज़ रिकॉर्डेड है और दुनिया के सारे ट्रेनिंग स्कूलों, एक्टिंग कोर्सेज़ में हर स्टूडेंट को वो आवाज़ सुनाई जाती है."

इसकी वजह वो हिटलर की आवाज़ के उतार-चढ़ाव को बताते हैं, जिसे शोले में जेलर के डायलॉग में अपनाया गया.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

  • 'एक्टिंग तो मैंने रुई बेचकर सीखी है'- कैसा रहा है 'पंचायत के बिनोद' का सफ़र
  • नसीरुद्दीन शाह की कहानी: न्यूज़ रूम ने ठुकराया, सिनेमा ने अपनाया
  • 'सैयारा' को इस कोरियन फ़िल्म का रीमेक बताने के दावे में कितना है दम
image
Loving Newspoint? Download the app now