उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धराली गांव में मंगलवार को बादल फटने से खीर गंगा गदेरे (गहरी खाई या नाला) में अचानक बाढ़ आ गई, जिससे चार लोगों की मौत हो गई. कई मकान और होटल तेज़ बहाव में बह गए हैं.
उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने घटनास्थल के लिए रवाना होने से पहले चार मौतों की पुष्टि की.
वहीं एनडीआरएफ़ के डीआईजी मोहसेन शाहेदी ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई को बताया, "अब तक की जानकारी के मुताबिक़ 40 से 50 घर बह चुके हैं और 50 से अधिक लोग लापता हैं."
धराली, गंगोत्री धाम से लगभग 20 किलोमीटर पहले स्थित एक प्रमुख पड़ाव है, जहां हर साल चारधाम यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु रुकते हैं.
फिलहाल सेना, एसडीआरएफ़, एनडीआरएफ़ और ज़िला प्रशासन की टीमें राहत और बचाव कार्यों में लगी हुई हैं.
लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसी घटनाओं के बारे में मौसम विभाग पहले से अलर्ट जारी कर सकता है? और आख़िर बादल फटने जैसी घटनाएं क्यों होती हैं?
इन सभी सवालों के जवाब बीबीसी हिंदी ने मौसम विभाग से जुड़े विशेषज्ञों से जाने हैं.
बादल फटना क्या होता है?मौसम विभाग की परिभाषा के मुताबिक़, एक घंटे में 10 सेंटीमीटर या उससे ज़्यादा भारी बारिश, छोटे इलाक़े (एक से दस किलोमीटर) में हो जाए तो उस घटना को बादल फटना कहते हैं.
कभी-कभी एक जगह पर एक से ज़्यादा बादल फट सकते हैं. ऐसी स्थिति में जान-माल का ज़्यादा नुक़सान होता है जैसा उत्तराखंड में साल 2013 में हुआ था, लेकिन हर भारी बारिश की घटना को बादल फटना नहीं कहते हैं.
यहां ये समझने वाली बात है कि केवल एक घंटे में 10 सेंटीमीटर भारी बारिश की वजह से ज़्यादा नुक़सान नहीं होता, लेकिन आस-पास अगर कोई नदी, झील पहले से है और उसमें अचानक पानी ज़्यादा भर जाता है, तो आस-पास के रिहायशी इलाकों में नुक़सान ज़्यादा होता है.
- उत्तराखंड: चारधाम यात्रा में हेलिकॉप्टर की सवारी जानलेवा होने की वजह
- उत्तराखंड के अल्मोड़ा में यात्रियों से भरी बस खाई में गिरी, 36 लोगों की मौत
- उत्तरकाशी सिलक्यारा सुरंग हादसे के एक साल, 17 दिन फंसे रहे मज़दूर काम पर वापस लौटे या नहीं
मानसून और मानसून के कुछ समय पहले (प्री-मानसून) इस तरह की घटना ज़्यादा होती है.
महीनों की बात करें तो मई से लेकर जुलाई और अगस्त तक भारत के उत्तरी इलाके में इस तरह का मौसमी प्रभाव देखने को मिलता है.
क्या बादल फटने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है?बादल फटने की घटनाएं एक से दस किलोमीटर की दूरी में छोटे पैमाने पर हुए मौसमी बदलाव की वजह से होती हैं.
इस वजह से इनका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है. रडार से एक बड़े एरिया के लिए बहुत भारी बारिश का पूर्वानुमान मौसम विभाग लगा सकता है, लेकिन किस इलाके में बादल फटेंगे, ये पहले से बताना मुश्किल होता है.
मौसम विभाग के मुताबिक़, ऐसे मौसमी बदलावों को बताने या मॉनिटर करने के लिए:
- या तो बादल फटने की आशंका वाले इलाकों में घने रडार नेटवर्क की ज़रूरत होती है.
- या फिर बहुत हाई रेजोल्यूशन वाले मौसम पूर्वानुमान मॉडल चाहिए जो इतनी छोटी स्केल की घटनाओं को पकड़ सकें.
- हालांकि बादल फटना मैदानी इलाकों में भी हो सकता है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी आशंका ज्यादा होती है. इसकी वजह ये है कि वहां की पर्वतीय ढलानें बादलों को ऊपर उठने और तेज़ बारिश होने के लिए अनुकूल माहौल देती हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
- उत्तराखंड: चारधाम यात्रा में हेलिकॉप्टर की सवारी जानलेवा होने की वजह
- उत्तराखंड के अल्मोड़ा में यात्रियों से भरी बस खाई में गिरी, 36 लोगों की मौत
- उत्तरकाशी सिलक्यारा सुरंग हादसे के एक साल, 17 दिन फंसे रहे मज़दूर काम पर वापस लौटे या नहीं
You may also like
उत्तर प्रदेश में किसान और नागिन के बीच अद्भुत दुश्मनी
ˈइन दो ब्लड ग्रुप वालों में सबसे अधिक आते हैं हार्ट अटैक के मामले, आप आज से ही हो जाएं सावधान
ˈआयुर्वेद से मात्र 11 दिनों में कैंसर ठीक कर देता है ये अस्पताल. कई मरीजों को कर चुका है ठीक
गेहूं की रोटी न खाने के प्रभाव: जानें क्या हो सकता है
ˈमांस से 10 गुना ज्यादा ताकतवर है ये फल, 1 महीने में बना देता पहलवान