क्या तेजस्वी यादव के अच्छे दिन आने वाले हैं.
बिहार में पहले चरण की वोटिंग संपन्न हो चुकी है, और यह चुनाव पिछले कई चुनावों से काफी भिन्न रहा। इस बार राज्य में वोटिंग का प्रतिशत रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है। पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर लगभग 65% वोटिंग हुई, जिससे राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सभी दल इसे अपने लिए शुभ मान रहे हैं, जबकि चुनाव आयोग भी इस उत्साह से खुश है।
हालांकि, यह वोटिंग तब हुई जब विपक्ष ने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर चुनाव आयोग पर धांधली के आरोप लगाए थे।
दूसरे चरण की तैयारी
अभी 122 सीटों पर वोटिंग बाकी
पहले चरण की वोटिंग के बाद अब दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान होना है। राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी प्रचार को तेज कर दिया है। पहले चरण में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव सहित कई मंत्रियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई। कुल 1,314 उम्मीदवारों ने चुनावी मैदान में भाग लिया।
60% वोटिंग का ऐतिहासिक संदर्भ
60% वोटिंग मतलब RJD की वापसी
बिहार में पिछले 40 वर्षों में 60% से अधिक वोटिंग का मतलब हमेशा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की सत्ता में वापसी रहा है। लालू प्रसाद यादव ने 1997 में आरजेडी का गठन किया था और तब से यह पार्टी कई बार सत्ता में आई है।
1985 में 56.27% वोटिंग के साथ कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, जबकि 1990 में यह आंकड़ा 62.04% तक पहुंच गया। यह वह समय था जब मंडल कमीशन की लहर चल रही थी।
लालू और राबड़ी का दौर
भ्रष्टाचार में फंसे लालू, राबड़ी का उदय
लालू यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन्होंने 1997 में आरजेडी का गठन किया। राबड़ी देवी ने 2000 में मुख्यमंत्री पद संभाला। हालांकि, चुनावों में वोटिंग का प्रतिशत घटता गया और 2005 में यह 46.50% तक गिर गया।
नीतीश कुमार का युग
नीतीश के दौर में 60 फीसदी वोटिंग नहीं
नीतीश कुमार के शासन में वोटिंग का प्रतिशत 50% से ऊपर गया, लेकिन 60% का आंकड़ा पार नहीं कर सका। 2015 में आरजेडी ने सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन नीतीश कुमार ने फिर से सत्ता में वापसी की।
तेजस्वी के लिए शुभ संकेत?
तो क्या तेजस्वी के लिए ये शुभ संकेत!
2020 के चुनाव में भी आरजेडी ने 75 सीटें जीतीं, लेकिन नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ मिलकर बहुमत हासिल किया। अगर इस बार भी 60% वोटिंग का ट्रेंड जारी रहा, तो तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो सकता है।
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