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दिल्ली हाई कोर्ट ने गूगल को 'सद्गुरु की झूठी गिरफ्तारी' के विज्ञापनों के खिलाफ तकनीक का इस्तेमाल करने का दिया आदेश

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New Delhi, 21 अक्टूबर . दिल्ली हाई कोर्ट ने 14 अक्टूबर को गूगल को निर्देश दिया कि वह सद्गुरु की एआई से बनी तस्वीरों का इस्तेमाल करने वाले फर्जी विज्ञापनों से निपटने के लिए अपनी तकनीक का उपयोग करे. यह सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन द्वारा इस बात को उजागर करने के बाद आया कि गूगल, सद्गुरु के नाम, तस्वीर और वीडियो के लगातार हो रहे गलत इस्तेमाल को रोकने में नाकाम रहा है. ये भ्रामक एआई डीपफेक विज्ञापन, जिनमें सद्गुरु की झूठी गिरफ्तारी का विज्ञापन भी शामिल है, उसके वीडियो शेयरिंग प्लेटफॉर्म यूट्यूब पर चल रहे थे.

जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की एकल जज बेंच ने गूगल से कहा कि सद्गुरु की झूठी गिरफ्तारी दिखाने वाले ऐसे विज्ञापनों का प्रकाशन रोका जाना चाहिए. कोर्ट ने गूगल को इस मुद्दे से निपटने के लिए अपनी तकनीक का इस्तेमाल करने का आदेश दिया और अगर उसकी तकनीक के उपयोग के संबंध में कोई सीमाएं या आपत्तियां हैं तो अदालत में हलफनामा दायर करके कारणों का विस्तार से उल्लेख करने को कहा. कोर्ट ने गूगल और ईशा को मुलाकात करने और इस मुद्दे पर संयुक्त रूप से चर्चा करने और एक ऐसे समाधान पर पहुंचने का भी निर्देश दिया ताकि ईशा फाउंडेशन को ऐसी सामग्री हटाने के लिए बार-बार संपर्क न करना पड़े.

अदालत को बताया गया कि गूगल की एक नीति है जो गिरफ्तारी, मौत जैसी नकारात्मक घटनाओं का इस्तेमाल करने वाले क्लिकबेट विज्ञापनों को प्रकाशित करने के खिलाफ है, लेकिन वह इसका पालन नहीं कर रहा था. यह भी बताया गया कि मध्यस्थ नियमों के अनुसार, गूगल तकनीक-आधारित उपाय लागू करने के लिए बाध्य है, जिसमें स्वचालित विधियां या अन्य तंत्र शामिल हैं, ताकि ऐसी जानकारी को सक्रिय रूप से पहचाना जा सके जो अदालत के आदेश के कारण पहले हटाई गई जानकारी के समान/अनुरूप है.

इससे पहले, सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था. उन्होंने उन सभी अज्ञात चैनलों और social media मध्यस्थों के खिलाफ मुकदमा दायर किया था, जहां सद्गुरु के व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन फर्जी और भ्रामक वीडियो, पोस्ट और विज्ञापनों के माध्यम से किया जा रहा था. दिल्ली हाई कोर्ट ने 30 मई 2025 के अपने आदेश के माध्यम से, सद्गुरु के व्यक्तित्व अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की थी और गूगल को ऐसे उल्लंघनकारी चैनलों और सामग्री को स्थगित करने, हटाने और निष्क्रिय करने का निर्देश दिया था.

हालांकि, कोर्ट के आदेश के बावजूद, यूट्यूब पर फर्जी विज्ञापनों में भारी बढ़ोतरी पाई गई है. इनमें सद्गुरु की गिरफ्तारी का झूठा दावा करने वाले धोखाधड़ी वाले विज्ञापन और उन्हें नकली निवेश योजनाओं को बढ़ावा देते हुए दिखाने वाले छेड़छाड़ किए गए वीडियो शामिल थे.

सद्गुरु के नाम पर जनता के भरोसे का चालाकी से फायदा उठाकर, ये क्लिकबेट विज्ञापन अनजान उपयोगकर्ताओं को उन वेबसाइटों पर ले जाते हैं जो व्यक्तिगत और वित्तीय डेटा चुराने या फर्जी निवेश घोटालों को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन की गई हैं. इन डीपफेक और भ्रामक विज्ञापनों के लगातार सर्कुलेशन से बड़े पैमाने पर भ्रम और चिंता पैदा हुई है, और हजारों स्वयंसेवक और आम जनता सद्गुरु की ‘गिरफ्तारी’ के झूठे दावों की पुष्टि करने के लिए संपर्क कर रहे हैं. ऐसी सुनियोजित गलत सूचना सद्गुरु के काम को नुकसान पहुंचाती है, जनता के भरोसे को कमजोर करती है, और डिजिटल संवाद की अखंडता को खतरे में डालती है.

ईशा फाउंडेशन ऐसी धोखाधड़ी वाली सामग्री को हटाने और लोगों को इन घोटालों का शिकार होने से बचाने के लिए लगातार सक्रिय कदम उठा रहा है. फाउंडेशन जनता से सतर्क रहने और यूट्यूब पर किसी भी ऐसे फर्जी विज्ञापन या वीडियो की रिपोर्ट करने का आग्रह करता है जो झूठा दावा करते हैं कि सद्गुरु को गिरफ्तार किया गया है, और उन्हें ‘घोटाला’ या ‘भ्रामक’ के रूप में चिह्नित करने का आग्रह करता है.

डीकेपी/

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