पहलगाम में आतंकियों द्वारा निर्दोष नागरिकों की नृशंस हत्या की तस्वीरें देख कर किस इंसान का कलेजा नहीं फटेगा, किस न्यायप्रिय व्यक्ति का खून नहीं खौलेगा? शोक के साथ क्षोभ होगा। ज़िम्मेदारी तय करने और सजा देने की इच्छा होगी। तुरत-फुरत बदला लेने और सबक सिखाने की माँग होगी। आतंकवादी यह जानते हैं, और यही चाहते हैं। टीवी और सोशल मीडिया के इस युग में आतंकवादी यह योजना बनाते हैं की उनकी किस कार्यवाही से किस तरह की प्रतिक्रिया होगी। भावना के उबाल में हम अक्सर ठीक वही सब करते हैं जो आतंकवादी हमसे करवाना चाहते थे। आतंकवाद के ख़िलाफ़ हमारी सफलता यह नहीं है की हमने कितना आक्रोश दिखाया, कितना जल्दी बदला लिया। हमारी सच्ची सफलता यह होगी की हमने आतंकवादियों के असली मंसूबों को किस तरह समझा और विफल किया।
अमरीकी उपराष्ट्रपति के भारत दौरे के बीच इतना बड़ा हमला करने के पीछे आतंकियों के आकाओं की जरूर यह सोच रही होगी कि इससे सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तू-तू-मैं-मैं होगी, भारत की कमजोरी दुनिया के सामने उभरेगी। इसलिए हमारा पहला दायित्व बनता है कि हम इस समय आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से बाज आएं। चाहे महाकुंभ में हुई मौत हो या फिर दिल्ली स्टेशन पर भगदड़ में हुई मौत, किसी भी दुर्घटना के तुरंत बाद सामूहिक शोक की बजाय जूतमपैजार अशोभनीय है।
यह समय शोक संतप्त परिवारों के साथ खड़े होने का है, अपने राजनीतिक हिसाब किताब का नहीं। लेकिन जब यह खेल आतंकवादी हमले के बाद खेले जाते हैं तो सिर्फ अशोभनीय ही नहीं, राष्ट्र को कमजोर करने वाले कदम साबित होते हैं। बेशक, अपने जमाने में बीजेपी ने खुलकर ऐसी खेल खेले थे। नरेंद्र मोदी ने तो 2008 के आतंकी हमले के बीचों-बीच मुंबई में जाकर मनमोहन सिंह सरकार की आलोचना करते हुए प्रेस कांफ्रेंस तक की थी। लेकिन अगर उस समय विपक्ष ग़लत था तो आज भी विपक्ष द्वारा ऐसी कोई हरकत ग़लत होगी। ज़िम्मेदारी तय करने का वक्त आयेगा, लेकिन आज वो समय नहीं है।
आज राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृह मंत्री या प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा मांगने का समय नहीं हैं। अगर हम आतंकवादियों के मंसूबों को विफल करना चाहते हैं पक्ष-विपक्ष या विचारधारा की दीवार के आर पार सब भारतीयों को आज एक साथ खड़ा होने की जरूरत है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान और नेता विपक्ष राहुल गांधी द्वारा गृह मंत्री अमित शाह को फ़ोन कर समर्थन देना सही दिशा में सही कदम हैं।
आतंकवादियों की दूसरी योजना यह रही होगी कि इस हत्याकांड से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़कर विस्फोटक बिंदु पर पहुँच जाय। जनता के ग़ुस्से के दबाव में भारत सरकार को जल्दबाजी में कुछ जवाबी कार्यवाही करनी पड़े। भारत-पाकिस्तान में सीमा पर तनाव बढ़ेगा तो पाकिस्तानी की राजनीति में फौज का वजन बढ़ेगा, आतंकियों के सरगना और ताकतवर बनेंगे। अगर हम आतंकियों की इस रणनीति को विफल करना चाहते हैं तो जरूरी है कि हम सरकार पर तुरंत बदले की कार्यवाही दिखाने का दबाव ना बनायें।
पहलगाम हत्याकांड की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन ने ली है, वैसे भी यह साफ़ था की इस घटना के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं। जाहिर है भारत सरकार को इसका जवाब देना होगा। लेकिन जल्दबाजी और दबाव में की गई किसी कार्यवाही से टीवी की सुर्खियां तो बन जाती हैं, वोट भी मिल सकते हैं, लेकिन आतंकवाद पर लगाम नहीं लगती।
वर्ष 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने ऊपरी तौर पर बदला लेने की बजाय चुपचाप पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद समर्थक साबित करते हुए उसे अलग-थलग करने में सफलता प्राप्त की। सबक यह है कि सरकार पर फौरी दबाव डालने की बजाय उस पर भरोसा किया जाय ताकि सेना, सुरक्षा एजेंसियां और राजनयिक सही समय पर और अपने तरीके से आतंकवाद के पाकिस्तानी आकाओं को जवाब दे सकें।
पहलगाम के आतंकियों की तीसरी साजिश यह रही होगी कि इससे कश्मीर और शेष भारत के बीच की दरार और चौड़ी हो जाएगी। पाकिस्तानी सेना के इशारे पर चलने वाले आतंकवादियों की दरिंदगी का ठीकरा हमारे अपने कश्मीर की जनता के सिर फोड़ने से आतंकवादियों की यह साज़िश कामयाब हो जाएगी। सच यह है कि यह हमला कश्मीर के लोगों की आजीविका पर हमला है। इस साल कश्मीर में टूरिस्ट बड़ी संख्या में आने शुरू हुए थे। यह हमला उन्हें रोकने के लिए था।
ऐसी घटना के बाद कम से कम इस टूरिस्ट सीजन में तो कश्मीर का सबसे बड़ा धंधा ठप्प पड़ जाएगा। हज़ारों परिवारों का रोजगार छिन गया है। कश्मीरी भी इस आतंकी घटना के शिकार हैं। आतंकवादियों से लड़ते हुए सैयद हुसैन शाह ने अपनी जान कुर्बान की है। कश्मीरी के तमाम राजनीतिक नेताओं और पार्टियों ने इस हत्याकांड की भर्त्सना की है। पहली बार किसी आतंकी घटना के ख़िलाफ़ पूरा कश्मीर बंद हुआ है, मस्जिदों से इसके ख़िलाफ़ पैग़ाम दिए गए हैं। अगर हम समझदारी दिखाए तो यह कठिन घड़ी कश्मीर और शेष भारत को एक दूसरे के नज़दीक ला आतंकियों को मुंह-तोड़ जवाब देने का अवसर बन सकती है।
पहलगाम के आतंकियों की सबसे गहरी साजिश भारत में हिंदू-मुस्लिम के बीच झगड़ा-फ़साद करवाने की है। उन्होंने अपने शिकारों की शिनाख्त उसके धर्म से की, चुन-चुन कर हिंदुओं को मारा। उनकी योजना साफ़ थी — उन्हें भरोसा था कि भारत में बहुत लोग उनकी नकल करेंगे। जैसे उन्होंने धर्म के नाम पर इंसानों को मारा उसी तरह दूसरे लोग भी अब धर्म के नाम पर हमला करेंगे।
हिंदू-मुसलमान की आग में भारत को जलाने का षड्यंत्र है यह। इसलिए जो भी पाकिस्तानी आतंकियों से बदला लेने के नाम पर भारतीय मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलता है, जो नाम और कपड़ों से इंसान की शिनाख्त करता है, वो आतंकवादियों के षड्यंत्र का हिस्सा बनता है। पहलगाम का हत्याकांड भारत में नफ़रत की आग फैलाने की योजना है। हिंदू-मुस्लिम एकता का संकल्प लेना और कहीं भी साम्प्रदायिक आग ना लगने देना ही पहलगाम के आतंकवादियों को सबसे करारा जवाब है।
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