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130वें संविधान संशोधन पर सियासी घमासान, बहुमत नहीं फिर भी केंद्र क्यों है आगे

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संसद के मानसून सत्र में केंद्र सरकार द्वारा संविधान का 130वां संशोधन विधेयक पेश किया गया है, जिससे सियासी हलकों में बहस तेज हो गई है। विपक्ष ने सवाल उठाया है कि जब सरकार के पास लोकसभा और राज्यसभा में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत नहीं है, तो फिर इस तरह का बड़ा विधेयक क्यों लाया जा रहा है?

इस संशोधन को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यह कदम कानूनी से ज़्यादा राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जो आगामी राज्यों के चुनाव और 2029 के आम चुनावों की तैयारी के तहत देखा जा रहा है।

क्या है 130वां संविधान संशोधन विधेयक?

130वें संविधान संशोधन का उद्देश्य अभी तक आधिकारिक रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक यह विधेयक स्थानीय निकायों के अधिकारों को मजबूत करने, सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने और कुछ राज्यों के राज्य सूची में परिवर्तन से संबंधित हो सकता है।

संविधान में किसी भी बदलाव के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जरूरी होता है। वर्तमान में केंद्र सरकार के पास यह आवश्यक संख्या नहीं है, खासकर राज्यसभा में।

विपक्ष ने उठाए सवाल

विपक्षी दलों ने इस पर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस नेता ने बयान जारी कर कहा,
“यह सिर्फ दिखावे की कवायद है। सरकार को पता है कि उसके पास आवश्यक बहुमत नहीं है, फिर भी विधेयक लाकर वह जनता के बीच यह संदेश देना चाहती है कि वह सुधारों को लेकर गंभीर है।”

टीएमसी, डीएमके और आम आदमी पार्टी जैसे दलों ने भी इस कदम को “राजनीतिक स्टंट” करार दिया है।

क्या कह रही है सरकार?

सरकार का कहना है कि वह केवल विधायी प्रक्रिया का पालन कर रही है और अगर देशहित में कोई संशोधन जरूरी हो, तो वह चुनौती से नहीं डरती। संसदीय कार्य मंत्री ने कहा,
“बहस और विमर्श लोकतंत्र की आत्मा हैं। हम संसद में चर्चा चाहते हैं और हर दल को अपने विचार रखने का अवसर देंगे।”

राजनीतिक विश्लेषण: क्या है असली उद्देश्य?

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह विधेयक एक राजनीतिक संदेश देने का माध्यम है। सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह संवैधानिक सुधारों को लेकर प्रतिबद्ध है, भले ही उसे जरूरी समर्थन अभी न मिल रहा हो।

इसके अलावा, यह कोशिश राज्यों में सरकार की सक्रियता और विकासशील एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए “पॉलिटिकल नैरेटिव” सेट करने का भी एक प्रयास हो सकता है।

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