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डायबिटीज टाइप-1 vs टाइप-2: जानें अंतर, कारण और लक्षण

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डायबिटीज यानी मधुमेह आज के समय की सबसे तेजी से बढ़ती बीमारियों में से एक है। यह शरीर में ब्लड शुगर लेवल को प्रभावित करती है और समय रहते कंट्रोल न हो तो हार्ट डिजीज, किडनी फेल्योर और स्ट्रोक जैसी गंभीर जटिलताएँ पैदा कर सकती है। डायबिटीज मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है – टाइप-1 और टाइप-2। दोनों में अंतर समझना जरूरी है ताकि सही समय पर सही इलाज और देखभाल की जा सके।

टाइप-1 डायबिटीज क्या है?

  • इसे इंसुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज भी कहा जाता है।
  • इसमें शरीर की इम्यून सिस्टम पैंक्रियाज़ में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।
  • इसकी वजह से शरीर में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बन पाता।

मुख्य कारण

  • जेनेटिक (आनुवंशिक कारण)
  • ऑटोइम्यून डिसऑर्डर
  • वायरल इंफेक्शन

लक्षण

  • बार-बार पेशाब आना
  • ज्यादा प्यास और भूख लगना
  • अचानक वजन कम होना
  • थकान और कमजोरी

टाइप-2 डायबिटीज क्या है?

  • इसे नॉन-इंसुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज कहा जाता है।
  • इसमें शरीर इंसुलिन तो बनाता है लेकिन उसका सही उपयोग नहीं कर पाता।
  • यह सबसे ज्यादा लाइफस्टाइल और गलत खानपान से जुड़ी होती है।

मुख्य कारण

  • मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता
  • असंतुलित आहार
  • हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल
  • पारिवारिक इतिहास

लक्षण

  • धीरे-धीरे वजन बढ़ना
  • लगातार थकान रहना
  • घाव देर से भरना
  • आँखों की रोशनी पर असर
  • हाथ-पाँव में झनझनाहट

टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज में अंतर

पहलू टाइप-1 डायबिटीज टाइप-2 डायबिटीज
शुरुआत की उम्र आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था आमतौर पर 35-40 साल के बाद
इंसुलिन उत्पादन बिल्कुल नहीं होता बनता है लेकिन असरदार नहीं
कारण ऑटोइम्यून और जेनेटिक मोटापा, लाइफस्टाइल और जेनेटिक
इलाज इंसुलिन इंजेक्शन जरूरी डाइट, व्यायाम, दवा और कुछ मामलों में इंसुलिन
प्रचलन कम (कुल मामलों का 5-10%) ज्यादा (कुल मामलों का 90-95%)

डायबिटीज से बचाव के उपाय

  • संतुलित और फाइबर युक्त आहार लें
  • नियमित योग और व्यायाम करें
  • वजन को नियंत्रित रखें
  • तनाव कम करें और पर्याप्त नींद लें
  • समय-समय पर ब्लड शुगर टेस्ट कराते रहें

टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज दोनों ही गंभीर हैं, लेकिन इनके कारण और उपचार अलग-अलग हैं। जहाँ टाइप-1 में इंसुलिन इंजेक्शन जरूरी होता है, वहीं टाइप-2 को अक्सर जीवनशैली में बदलाव और दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है। समय रहते सही पहचान और इलाज से डायबिटीज को लंबे समय तक कंट्रोल में रखा जा सकता है।

 

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