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शांति की आशा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज मणिपुर जा रहे हैं। उनकी यह यात्रा बहुप्रतीक्षित थी। दो साल से ज्यादा वक्त से यह राज्य अशांत है। छिटपुट हिंसा का दौर अब भी जारी है। पीएम के दौरे और विकास परियोजनाओं के ऐलान से शांति व स्थायित्व बहाल करने में मदद मिल सकती है।



जानमाल का बड़ा नुकसान: मणिपुर का मौजूदा संकट मार्च 2023 में वहां के हाईकोर्ट के उस आदेश से शुरू हुआ था, जिसमें राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने पर जल्द विचार करने को कहा गया था। इसके कुछ दिनों बाद ही कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी। इसमें 250 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और हजारों विस्थापितों की तरह रहने को मजबूर हैं।



आम सहमति: इस संघर्ष ने राज्य की दो प्रमुख जनजातियों के बीच अविश्वास को और गहरा कर दिया है। मामले की जटिलता यह है कि कुकी और मैतेई ही नहीं, कई दूसरी जनजातियां भी हैं, जिनको वार्ता का हिस्सा बनाए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। उम्मीद की जा सकती है कि प्रधानमंत्री के जाने से इस दिशा में ठोस पहल होगी।



अराजकता पर लगाम: पीएम मोदी राजधानी इंफाल के साथ चुराचांदपुर भी जाएंगे। हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में चुराचांदपुर है। पीएम के दौरे का ऐलान होने के बाद भी यहां से पुलिस और सुरक्षाबलों के साथ कुछ लोगों की झड़प की खबरें आई थीं। इससे जाहिर होता है कि कुछ अराजक तत्व शांति बहाली की कोशिशों को पटरी से उतारना चाहते हैं।



भरोसे की जरूरत: राज्य के लोगों को यह भरोसा दिलाने की जरूरत है कि सरकार किसी एक समुदाय या वर्ग के साथ नहीं, पूरे मणिपुर के साथ है और उनकी सामूहिक भलाई के लिए काम कर रही है। दरअसल, निवर्तमान सीएम एन बीरेन सिंह को इसीलिए इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि उन्हें लेकर कुकी समुदाय आश्वस्त नहीं था। यह भी आरोप लगे थे कि उन्होंने हिंसा से निपटने के लिए जरूरी तत्परता नहीं दिखाई।



संवेदनशीलता की जरूरत: मणिपुर का सामाजिक तानाबाना बहुत नाजुक है। यहां पहले भी कुकी-पाइते और मैतेई-पंगल संघर्ष हो चुका है। केंद्र की एक्ट-ईस्ट पॉलिसी का हिस्सा होने और म्यांमार से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा के कारण मणिपुर में ज्यादा संवेदनशीलता व सावधानी बरतने की जरूरत है।

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