मां पर मुनव्वर राणा की शायरी

- ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए,दिये से मेरी मां मेरे लिए काजल बनाती हैछू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसकोयह बच्चा अभी मां की दुआ ओढ़े हुए है।- मुनव्वर राणा
- ‘लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती, बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती’
- चलती फिरती आंखों से अजां देखी है मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है।
- ‘बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ, उठाया गोद में मां ने तब आसमान छुआ’
- ‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई,मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई’
- ‘ ऐ अंधेरे! देख ले मुंह तेरा काला हो गया,मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया..’
- ‘इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती हैमां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है’
- जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
- मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं।
- ‘कल अपने-आप को देखा था मां की आंखों में,ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है।’- मुनव्वर राणा
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बेसन की सोंधी रोटी - निदा फ़ाज़ली

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुंकनी जैसी मां।बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे,आधी सोई, आधी जागी, थकी दुपहरी जैसी मां।
चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-अली,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी मां।बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में,
दिनभर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां।बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गईं ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां।
बचपन को जब मैं याद करूं - प्रथम गौर
बचपन को जब, मैं याद करूं, हर लम्हा फरियाद करूंकोई नहीं तुझ जैसा मां, क्यूं झूठी मैं बात करूंमेरे दिन की शुरुआत से पहलेभूख मेरी,मेरी प्यास से पहलेमेरी हर आहट जान गई ,मेरी हर जिद को मान गईरोता मैं तकना उसका,सोते में जगना उसकाशिकन मेरे चेहरे पे जब ,माथे पे चुम्बन उसकापर दिन वो सारे बड़े हुए ,हम पैरो पे खड़े हुएअब चलने पे जोर हुआ ,मां का आंचल अब दूर हुआघर के बाहर मेरा जाना,मिट्टी में खेल के खिल जानादूध को हाथ में लिए हुए इसी बीच उसका आना,देख मुझे हंसना पहले , मां मेरी दुनिया सबसे पहले!!लिखने पढ़ने की बात शुरूमां की ठंडी वो डांट शुरूक, ख, ग,उसका कहना
तुतलाता मैं उसका हंसनाये सारे नगमे छूट गएहम घर से मां से दूर गए !!
मां... मदर्स डे पर ओम व्यास की शानदार कविता
मां…मां-मां संवेदना है, भावना है अहसास है मां…मां जीवन के फूलों में खुशबू का वास है, मां…मां रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है मां…मां मरूस्थल में नदी या मीठा सा झरना है, मां…मां लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है, मां…मां पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है, मां…मां आंखों का सिसकता हुआ किनारा है, मां…मां गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है, मां…मां झुलसते दिलों में कोयल की बोली है, मां…मां मेहंदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है, मां…मां कलम है, दवात है, स्याही है, मां…मां परमात्मा की स्वयं एक गवाही है, मां…मां त्याग है, तपस्या है, सेवा है, मां…मां फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है, मां…मां अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है, मां…मां जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है, मां…मां चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है, मां…मां काशी है, काबा है और चारों धाम है, मां…मां चिंता है, याद है, हिचकी है, मां…मां बच्चे की चोट पर सिसकी है, मां…मां चूल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है, मां…मां ज़िंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है, मां…मां पृथ्वी है, जगत है, धुरी है, मां बिना इस सृष्टी की कल्पना अधूरी है, तो मां की ये कथा अनादि है, ये अध्याय नहीं है… …और मां का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,तो मां का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता, और मां जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता।
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कितना कूड़ा करता है पीपल - गुलज़ार

कितना कूड़ा करता है पीपल आंगन में, मां को दिन में दो बार बोहारी करनी पड़ती है।
कैसे-कैसे दोस्त-यार आते हैं इसके खाने को ये पीपलियां देता है।
सारा दिन शाखों पर बैठे तोते-घुग्घू, आधा खाते, आधा वहीं जाया करते हैं।
गिटक-गिटक सब आंगन में ही फेंक के जाते हैं। एक डाल पर चिड़ियों ने भी घर बांधे हैं, तिनके उड़ते रहते हैं आंगन में दिनभर।
एक गिलहरी भोर से लेकर सांझ तलक जाने क्या उजलत रहती है। दौड़-दौड़ कर दसियों बार ही सारी शाखें घूम आती है।
चील कभी ऊपर की डाली पर बैठी, बौराई-सी, अपने-आप से बातें करती रहती है।
आस-पड़ोस से झपटी-लूटी हड्डी-मांस की बोटी भी कमबख़्त ये कव्वे, पीपल ही की डाल पे बैठ के खाते हैं।
ऊपर से कहते हैं पीपल, पक्का ब्राह्मण है।
हुश-हुश करती है मां, तो ये मांसखोर सब, काएं-काएं उस पर ही फेंक के उड़ जाते हैं, फिर भी जाने क्यों! मां कहती है-आ कागा मेरे श्राद्ध पे अइयो, तू अवश्य अइयो !
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