मुखी आज जवान हो गई है। 29 मार्च, 2023 को इस दुनिया में कदम रखते ही मुखी ने इतिहास रच दिया था। 70 साल में वो पहली चीता था, जिसने भारत की धरती पर जन्म लिया था। लेकिन जन्म लेते ही इस मादा चीता की मुश्किलें शुरू हो गईं। साथ में जन्मे भाई-बहनों की मौत हो गई। मां ने भी अपनाने से इनकार कर दिया और अनजान जंगल में मरने के लिए छोड़ दिया। लेकिन मुखी की किस्मत में कुछ और ही लिखा था।
उसने सब मुश्किलों को पार किया। खुद से शिकार करना सीखा। जंगल में जीने के गुर सीखे और आज 29 सितंबर को मुखी 195 दिन यानी 30 महीने की हो गई है। इसका मतलब कि वो अब वो एक वयस्क मादा हो गई है। यह उपलब्धि भारत के प्रोजेक्ट चीता के लिए एक मील का पत्थर है। अब मुखी उस उम्र में पहुंच चुकी हैं, जब वो मां बन सकती है। लेकिन एक अनाथ शावक से उम्मीद की किरण बनने तक का उसका सफर कतई आसान नहीं था।
अफ्रीका से आए मां-बापप्रोजेक्ट चीता के अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर 17 सितंबर, 2022 को नामीबिया से 8 चीता मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाए गए। इन्हीं में शामिल थे मादा ज्वाला और नर शौर्य चीता। अफ्रीकी चीतों के लिए भारत की परिस्थितियों में ढलना आसान नहीं था। यहां की भीषण गर्मी के साथ वो तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे। इसी बीच 70 साल में भारत में पहली बार उम्मीद की किरण जागी।
29 मार्च, 2023 को एक मादा शावक ने इस धरती पर कदम रखा। वन विभाग ने उसका नाम रखा-मुखी। भारत से चीता खत्म होने के बाद 7 दशक में यह पहला मौका था, जब किसी चीता का भारतीय धरती पर जन्म हुआ हो। लेकिन इससे पहले कि खुशी मनाई जाती, वन विभाग और मुखी दोनों को तगड़ा झटका लगा। उसकी मां ज्वाला ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया। भीषण गर्मी के चलते एक-एक करके उसके 3 भाई-बहनों की मौत हो गई। वन विभाग को डर सताने लगा कि मुखी की किस्मत में भी कहीं असमय मौत न लिखी हो।
मां ने छोड़ा वन विभाग ने पालाप्रोजेक्ट चीता के डायरेक्टर उत्तम कुमार बताते हैं कि मुखी को पालना बिल्कुल आसान नहीं था। हमें इससे पहले किसी चीता के शावक को पालने का अनुभव नहीं था। उनके लिए तो यहां का वातावरण नया था ही, हमारे लिए भी सब नया था। लेकिन मुखी में जीने की ललक थी। वो हार मानने को तैयार नहीं थी। उसने दिखा दिया कि भारत के चुनौतीपूर्ण वातावरण में भी वो जिंदा रह सकती है। मुखी ने बिना मां के जंगल में जीने के गुर सीखने शुरू किए। उसने खुद से ही शिकार करना सीखा। कई बार चोटिल भी हुई, लेकिन फिर उठ खड़ी हुई।
भारत में जन्मे 10 चीता की मौतमुखी प्रोजेक्ट चीता के लिए कितनी अहम है, इसका पता इसी बात से लग सकता है कि भारत में जन्मे कई शावक जवान होने से पहले ही दुनिया छोड़ चुके हैं। भारत में इस समय 27 चीता हैं, जिनमें से 16 का जन्म भारत में ही हुआ है। भारतीय धरती पर जन्म लेने वाली मुखी पहली चीता है। इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद 26 चीते जन्म ले चुके हैं। लेकिन इनमें से 19 की मौत हो गई। इन 19 में से 9 अफ्रीका में जन्मे थे तो 10 का जन्म भारत में ही हुआ था।
कूनो की पोस्टर गर्ल से मां बनने की ओरअब मुखी जवान हो चुकी है और उसके लिए जीवनसाथी की तलाश शुरू हो चुकी है। हालांकि ऐसा संभव है कि उसे कभी भी जंगल में अपने हाल में न छोड़ा जाए। मुखी शिकार करना तो सीख रही है, लेकिन अभी भी उसे अलग से भोजन दिया जाता है। वो वन विभाग के बेड़े में ही रहती है और उस पर निगरानी रखी जाती है। हालांकि ब्रीडिंग प्रोग्राम में मुखी को शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
उसने सब मुश्किलों को पार किया। खुद से शिकार करना सीखा। जंगल में जीने के गुर सीखे और आज 29 सितंबर को मुखी 195 दिन यानी 30 महीने की हो गई है। इसका मतलब कि वो अब वो एक वयस्क मादा हो गई है। यह उपलब्धि भारत के प्रोजेक्ट चीता के लिए एक मील का पत्थर है। अब मुखी उस उम्र में पहुंच चुकी हैं, जब वो मां बन सकती है। लेकिन एक अनाथ शावक से उम्मीद की किरण बनने तक का उसका सफर कतई आसान नहीं था।
अफ्रीका से आए मां-बापप्रोजेक्ट चीता के अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर 17 सितंबर, 2022 को नामीबिया से 8 चीता मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाए गए। इन्हीं में शामिल थे मादा ज्वाला और नर शौर्य चीता। अफ्रीकी चीतों के लिए भारत की परिस्थितियों में ढलना आसान नहीं था। यहां की भीषण गर्मी के साथ वो तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे। इसी बीच 70 साल में भारत में पहली बार उम्मीद की किरण जागी।
29 मार्च, 2023 को एक मादा शावक ने इस धरती पर कदम रखा। वन विभाग ने उसका नाम रखा-मुखी। भारत से चीता खत्म होने के बाद 7 दशक में यह पहला मौका था, जब किसी चीता का भारतीय धरती पर जन्म हुआ हो। लेकिन इससे पहले कि खुशी मनाई जाती, वन विभाग और मुखी दोनों को तगड़ा झटका लगा। उसकी मां ज्वाला ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया। भीषण गर्मी के चलते एक-एक करके उसके 3 भाई-बहनों की मौत हो गई। वन विभाग को डर सताने लगा कि मुखी की किस्मत में भी कहीं असमय मौत न लिखी हो।
मां ने छोड़ा वन विभाग ने पालाप्रोजेक्ट चीता के डायरेक्टर उत्तम कुमार बताते हैं कि मुखी को पालना बिल्कुल आसान नहीं था। हमें इससे पहले किसी चीता के शावक को पालने का अनुभव नहीं था। उनके लिए तो यहां का वातावरण नया था ही, हमारे लिए भी सब नया था। लेकिन मुखी में जीने की ललक थी। वो हार मानने को तैयार नहीं थी। उसने दिखा दिया कि भारत के चुनौतीपूर्ण वातावरण में भी वो जिंदा रह सकती है। मुखी ने बिना मां के जंगल में जीने के गुर सीखने शुरू किए। उसने खुद से ही शिकार करना सीखा। कई बार चोटिल भी हुई, लेकिन फिर उठ खड़ी हुई।
भारत में जन्मे 10 चीता की मौतमुखी प्रोजेक्ट चीता के लिए कितनी अहम है, इसका पता इसी बात से लग सकता है कि भारत में जन्मे कई शावक जवान होने से पहले ही दुनिया छोड़ चुके हैं। भारत में इस समय 27 चीता हैं, जिनमें से 16 का जन्म भारत में ही हुआ है। भारतीय धरती पर जन्म लेने वाली मुखी पहली चीता है। इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद 26 चीते जन्म ले चुके हैं। लेकिन इनमें से 19 की मौत हो गई। इन 19 में से 9 अफ्रीका में जन्मे थे तो 10 का जन्म भारत में ही हुआ था।
कूनो की पोस्टर गर्ल से मां बनने की ओरअब मुखी जवान हो चुकी है और उसके लिए जीवनसाथी की तलाश शुरू हो चुकी है। हालांकि ऐसा संभव है कि उसे कभी भी जंगल में अपने हाल में न छोड़ा जाए। मुखी शिकार करना तो सीख रही है, लेकिन अभी भी उसे अलग से भोजन दिया जाता है। वो वन विभाग के बेड़े में ही रहती है और उस पर निगरानी रखी जाती है। हालांकि ब्रीडिंग प्रोग्राम में मुखी को शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
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