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वोटिंग परसेंटेज बढ़ने का मतलब हमेशा सत्ता परिवर्तन नहीं, लालू-नीतीश मत प्रतिशत बढ़ने के बाद भी सत्ता में रहे

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पटना: वोटिंग परसेंटेज बढ़ने का क्या मतलब है ? आम तौर पर मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी, सत्ता विरोधी भावना से जुड़ी मानी जाती है। लेकिन दूसरी तरफ यह भी कहा जाता है कि मतदान की सुविधा, वोटर के हित में नजदीक मतदान केन्द्र बनाने, मजबूत कानून-व्यवस्था और जागरूकता से भी वोटर टर्नआउट बढ़ता है। कुछ पार्टियों का तर्क है कि हमेशा सरकार विरोधी भावना ही काम नहीं करती। कभी-कभी वोटर सरकार के काम से खुश होकर भी अधिक संख्या में मतदान करते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 60 फीसदी से अधिक मतदान हुआ है।


कमी या उछाल से हमेशा सटीक संकेत नहीं

मतदान प्रतिशत में कमी या उछाल से हमेशा सटीक संकेत नहीं मिलता। जैसे 2000 के चुनाव में 62.5 फीसदी मतदान हुआ था। इसके बाद फरवरी 2005 में जब चुनाव हुआ तो वोटिंग परसेंटेज घट कर 47 पर पहुंच गया। अगर मतदान प्रतिशत कम होने से सरकार को फायदा मिलने की अवधारणा सही होती तो राबड़ी देवी की सरकार बच जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसी दल को बहुमत नहीं मिला और सरकार नहीं बन पायी।

मतदान प्रतिशत बढ़े या घटे लालू-राबड़ी सत्ता में रहेजब लालू यादव-राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थे, तब मतदान प्रतिशत बढ़े या घटे, सत्ता उनकी सुरक्षित रही। 1990 में 62.04 फीसदी, 1995 में 61.8 फीसदी और 2000 में 62.5 फीसदी मतदान हुआ था। दो बार लालू यादव की और एक बार राबड़ी देवी की सरकार बनी। वोटर टर्नआउट का यह सबसे अच्छा दौर था।

अक्टूबर 2005 के चुनाव में जब लालू यादव की सत्ता से विदाई और नीतीश कुमार की ताजपोशी हुई तो उस समय 45.8 फीसदी ही मतदान हुआ था। 2010 के विधानसभा चुनाव में 53 फीसदी मतदान हुआ था। 2005 की तुलना में इस बार मतदान प्रतिशत बढ़ गया था। लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार फिर सत्ता में लौटे।

2015 में 56.6 फीसदी मतदान हुआ। लेकिन इस बार नीतीश कुमार लालू यादव के साथ गठबंधन कर सत्ता में लौटे। इसलिए इस मामले में मतदान प्रतिशत के बढ़ने का सही-सही आंकलन नहीं किया जा सकता।

2020 में पहले चरण में 53 फीसदी वोटिंग
2020 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण के तहत 71 सीटों पर चुनाव हुआ था। उस समय पहले चरण में 53 फीसदी मतदान हुआ था। यहां गौर करने की बात ये है कि यह मतदान प्रतिशत कोविड महामारी के बीच हुए चुनाव का है। इस मतदान प्रतिशत के साथ नीतीश कुमार फिर सत्ता में लौटे। हां, उनकी सीटें जरूर कम हो गयीं। 2025 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण के तहत 121 सीटों पर चुनाव हुआ है। इसलिए हम इस चुनाव और पिछले चुनाव की तुलना नहीं कर सकते।

अभी दूसरे चरण का मतदान है बाकीगुरुवार को पहले चरण में जिन 121 सीटों पर चुनाव हुआ है, उनमें 61 सीटें महागठबंधन के पास हैं। यानी पिछले चुनाव में महागठबंधन पहले चरण में एनडीए (59) पर आंशिक बढ़त प्राप्त की थी। पिछली बार पहले चरण में 53 फीसदी मतदान हुआ था। आखिर में एनडीए की सरकार बनी। इसलिए जब तक सभी चरण के चुनाव नहीं हो जाते तब तक कुछ कहना ठीक नहीं रहेगा। अगर 2025 में पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा मतदान (60 फीसदी से अधिक) हुआ भी तो इसका मतलब ये नहीं है इससे राजनीतिक परिवर्तन हो ही जाएगा।

जैसे 2010 में 2005 की तुलना में करीब 7 फीसदी मतदान ज्यादा हुआ था। लेकिन सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ था। नीतीश कुमार ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनायी थी। 2010 में जदयू को 115 और भाजपा को 91 सीटें मिलीं थीं। यानी एनडीए ने 243 में से 206 सीटें एकतरफा जीत ली थीं।
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