नई दिल्ली: अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर खत्म होने के संकेत हैं। वे कई सालों की सबसे बड़ी ट्रेड डील के करीब हैं। दोनों देशों के शीर्ष अधिकारी एक अहम समझौते पर पहुंचे हैं। इससे शेयर बाजार में तेजी आ सकती है। दुर्लभ खनिजों (रेयर अर्थ) को लेकर नया विवाद भी टल सकता है। इस हफ्ते होने वाली डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात से पहले यह शुरुआती एग्रीमेंट एक व्यापक आर्थिक समझौते की पिच तैयार करेगा। वहीं, भारत पर अमेरिका-चीन व्यापार समझौते का असर जटिल और बहुआयामी होगा। यह समझौता किस हद तक होता है और उसमें क्या शर्तें शामिल होती हैं, इस पर निर्भर करेगा।
अमेरिका-चीन में यह प्रारंभिक समझौता रविवार को कुआलालंपुर में दो दिन की लंबी बातचीत के बाद हुआ। इस बातचीत में फेंटानिल दवा, शिपिंग टैक्स, सोयाबीन की खरीद और दुर्लभ खनिजों पर लगे प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर बात हुई। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने सीबीएस न्यूज को बताया कि ट्रंप की ओर से चीनी सामानों पर लगाए जाने वाले 100% टैरिफ का खतरा अब लगभग टल गया है। वहीं, चीन एक बार फिर बड़ी मात्रा में सोयाबीन खरीदेगा। दुर्लभ खनिजों यानी रेयर अर्थ के निर्यात पर लगाए जाने वाले कड़े प्रतिबंधों को कम से कम एक साल के लिए टाल देगा।
रेयर अर्थ पर बन रही है बात
अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव जैमिसन ग्रीर ने फॉक्स न्यूज संडे पर कहा कि रेयर अर्थ को लेकर बातचीत बहुत अच्छी तरह से आगे बढ़ रही है। ट्रंप ने भी इस पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह चीन के साथ एक अच्छे समझौते की ओर कदम है। यह ढांचागत समझौता महीनों से चल रहे एक-दूसरे को धमकी देने के दौर के बाद आया है। अक्टूबर में चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात को कड़ा कर दिया था। इसके जवाब में ट्रंप ने टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी। अगर गुरुवार को ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच यह समझौता पक्का हो जाता है तो टिकटॉक की बिक्री और बंदरगाहों पर लगने वाले टैक्स जैसे मुद्दे भी सुलझ जाएंगे।
भारत पर क्या होगा असर?अमेरिका और चीन के बीच किसी भी बड़े व्यापार समझौते का सबसे महत्वपूर्ण असर वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर पड़ेगा। दोनों देशों के बीच तनाव कम होने से वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता घटेगी। इससे निवेश का माहौल सुधरेगा। भारत को इसका अप्रत्यक्ष लाभ मिलेगा क्योंकि स्थिर वैश्विक अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश (एफडीआई) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) बढ़ने की संभावना है। अगर समझौता वैश्विक विकास को रफ्तार देता है तो भारतीय निर्यात के लिए भी नए अवसर पैदा हो सकते हैं। खासकर आईटी और सेवा क्षेत्रों में क्योंकि चीन और अमेरिका दोनों की मांग बढ़ेगी। हालांकि, यह भी ध्यान रखना होगा कि अगर दोनों देश मिलकर व्यापार करते हैं तो भारत के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी।
हालांकि, नकारात्म पहलू भी है। ट्रेड वॉर के दौरान कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन की जगह भारत और वियतनाम जैसे देशों से सामान खरीदना शुरू कर दिया था। अगर अमेरिका और चीन टैरिफ को कम करते हैं और उनके बीच व्यापार सामान्य होता है तो ये मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां वापस चीन की ओर मुड़ सकती हैं। इससे उन भारतीय उद्योगों पर दबाव पड़ेगा जिन्हें हाल ही में चीन से दूर हटने वाली कंपनियों से फायदा मिला था। इसके अलावा, अगर चीन अमेरिकी वस्तुओं को अधिक खरीदता है तो चीन के बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों या अन्य वस्तुओं की डिमांड कम हो सकती है। इससे भारत के लिए चीन में निर्यात बढ़ाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
यह समझौता सप्लाई चेन के पुनर्गठन की रफ्तार को प्रभावित करेगा। अगर डील व्यापक होती है तो कंपनियां चीन पर निर्भरता कम करने के अपने प्रयासों को धीमा कर सकती हैं, जो भारत की 'मेक इन इंडिया' और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं के लिए एक झटका होगा।
अमेरिका-चीन में यह प्रारंभिक समझौता रविवार को कुआलालंपुर में दो दिन की लंबी बातचीत के बाद हुआ। इस बातचीत में फेंटानिल दवा, शिपिंग टैक्स, सोयाबीन की खरीद और दुर्लभ खनिजों पर लगे प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर बात हुई। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने सीबीएस न्यूज को बताया कि ट्रंप की ओर से चीनी सामानों पर लगाए जाने वाले 100% टैरिफ का खतरा अब लगभग टल गया है। वहीं, चीन एक बार फिर बड़ी मात्रा में सोयाबीन खरीदेगा। दुर्लभ खनिजों यानी रेयर अर्थ के निर्यात पर लगाए जाने वाले कड़े प्रतिबंधों को कम से कम एक साल के लिए टाल देगा।
रेयर अर्थ पर बन रही है बात
अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव जैमिसन ग्रीर ने फॉक्स न्यूज संडे पर कहा कि रेयर अर्थ को लेकर बातचीत बहुत अच्छी तरह से आगे बढ़ रही है। ट्रंप ने भी इस पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह चीन के साथ एक अच्छे समझौते की ओर कदम है। यह ढांचागत समझौता महीनों से चल रहे एक-दूसरे को धमकी देने के दौर के बाद आया है। अक्टूबर में चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात को कड़ा कर दिया था। इसके जवाब में ट्रंप ने टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी। अगर गुरुवार को ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच यह समझौता पक्का हो जाता है तो टिकटॉक की बिक्री और बंदरगाहों पर लगने वाले टैक्स जैसे मुद्दे भी सुलझ जाएंगे।
भारत पर क्या होगा असर?अमेरिका और चीन के बीच किसी भी बड़े व्यापार समझौते का सबसे महत्वपूर्ण असर वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर पड़ेगा। दोनों देशों के बीच तनाव कम होने से वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता घटेगी। इससे निवेश का माहौल सुधरेगा। भारत को इसका अप्रत्यक्ष लाभ मिलेगा क्योंकि स्थिर वैश्विक अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश (एफडीआई) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) बढ़ने की संभावना है। अगर समझौता वैश्विक विकास को रफ्तार देता है तो भारतीय निर्यात के लिए भी नए अवसर पैदा हो सकते हैं। खासकर आईटी और सेवा क्षेत्रों में क्योंकि चीन और अमेरिका दोनों की मांग बढ़ेगी। हालांकि, यह भी ध्यान रखना होगा कि अगर दोनों देश मिलकर व्यापार करते हैं तो भारत के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी।
हालांकि, नकारात्म पहलू भी है। ट्रेड वॉर के दौरान कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन की जगह भारत और वियतनाम जैसे देशों से सामान खरीदना शुरू कर दिया था। अगर अमेरिका और चीन टैरिफ को कम करते हैं और उनके बीच व्यापार सामान्य होता है तो ये मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां वापस चीन की ओर मुड़ सकती हैं। इससे उन भारतीय उद्योगों पर दबाव पड़ेगा जिन्हें हाल ही में चीन से दूर हटने वाली कंपनियों से फायदा मिला था। इसके अलावा, अगर चीन अमेरिकी वस्तुओं को अधिक खरीदता है तो चीन के बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों या अन्य वस्तुओं की डिमांड कम हो सकती है। इससे भारत के लिए चीन में निर्यात बढ़ाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
यह समझौता सप्लाई चेन के पुनर्गठन की रफ्तार को प्रभावित करेगा। अगर डील व्यापक होती है तो कंपनियां चीन पर निर्भरता कम करने के अपने प्रयासों को धीमा कर सकती हैं, जो भारत की 'मेक इन इंडिया' और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं के लिए एक झटका होगा।
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