विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के बीच इसी 21 तारीख को मॉस्को में मुलाकात होगी। जयशंकर की यह यात्रा ऐसे वक्त में हो रही है, जब वैश्विक परिस्थितियां बिल्कुल भी सामान्य नहीं हैं। ऐसे में यह यात्रा भी विशेष हो जाती है। भारत-अमेरिका संदर्भ में इसका खास महत्व है।
मॉस्को महत्वपूर्ण: कूटनीति में सबसे अहम चीज होती है टाइमिंग। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के कारण जिस दिन भारत पर 25% एक्स्ट्रा टैरिफ लगाया था, उसके अगले ही दिन भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन से भेंट की थी। डोभाल के तुरंत बाद अब जयशंकर का दौरा यह दिखाता है कि भारत के लिए रूस के साथ रिश्ते कितने महत्वपूर्ण हैं और दोनों की दोस्ती दशकों पुरानी है।
स्वतंत्र विदेश नीति: भारत और रूस पर दबाव बनाने के लिए ट्रंप हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान के साथ ट्रेड डील, उसके सेना प्रमुख की अगवानी ऐसे कुछ कदम हैं, जो भारतीय हितों से मेल नहीं खाते। रूसी तेल को लेकर ट्रंप के दबाव में भारत नहीं आया है और न ही उसे आना चाहिए। भारत का रुख यही रहा है कि वह देशहित में फैसला करेगा।
द्विपक्षीय संबंधों पर बात: जयशंकर की रूस यात्रा का ऐलान रूसी विदेश मंत्रालय की तरफ से किया गया। इसमें बताया गया कि बैठक में दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय संबंधों समेत कई अहम मुद्दों पर बात होगी। स्वाभाविक तौर पर इसमें एक मुद्दा अमेरिका का भी होगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि इसी शुक्रवार को अलास्का में यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर ट्रंप और पूतिन मिलने वाले हैं।
व्यापारिक संबंध: रूस पहले से ही पश्चिमी पाबंदियों की मार झेल रहा है, जबकि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए भारत को नए बाजारों की तलाश है। यही मौका है, जब दोनों देश अपने व्यापारिक संबंधों को नया आयाम दे सकते हैं। 2024-25 में भारत-रूस के बीच 68.7 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था।
संवाद अच्छा: कुछ दिनों पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने पूतिन से फोन पर बात की थी और उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया था। पूतिन का भारत दौरा इसी साल के आखिर में प्रस्तावित है। इससे पहले वह दिसंबर 2021 में नई दिल्ली में आयोजित भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आए थे। फिर इस महीने के आखिर में शंघाई को-ऑपरेशन समिट में भी मोदी और पूतिन की मुलाकात की संभावना है। आशा है कि दोनों देश आपसी संबंधों को ऐसे मंचों के जरिये और आगे ले जाएंगे।
मॉस्को महत्वपूर्ण: कूटनीति में सबसे अहम चीज होती है टाइमिंग। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के कारण जिस दिन भारत पर 25% एक्स्ट्रा टैरिफ लगाया था, उसके अगले ही दिन भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन से भेंट की थी। डोभाल के तुरंत बाद अब जयशंकर का दौरा यह दिखाता है कि भारत के लिए रूस के साथ रिश्ते कितने महत्वपूर्ण हैं और दोनों की दोस्ती दशकों पुरानी है।
स्वतंत्र विदेश नीति: भारत और रूस पर दबाव बनाने के लिए ट्रंप हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान के साथ ट्रेड डील, उसके सेना प्रमुख की अगवानी ऐसे कुछ कदम हैं, जो भारतीय हितों से मेल नहीं खाते। रूसी तेल को लेकर ट्रंप के दबाव में भारत नहीं आया है और न ही उसे आना चाहिए। भारत का रुख यही रहा है कि वह देशहित में फैसला करेगा।
द्विपक्षीय संबंधों पर बात: जयशंकर की रूस यात्रा का ऐलान रूसी विदेश मंत्रालय की तरफ से किया गया। इसमें बताया गया कि बैठक में दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय संबंधों समेत कई अहम मुद्दों पर बात होगी। स्वाभाविक तौर पर इसमें एक मुद्दा अमेरिका का भी होगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि इसी शुक्रवार को अलास्का में यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर ट्रंप और पूतिन मिलने वाले हैं।
व्यापारिक संबंध: रूस पहले से ही पश्चिमी पाबंदियों की मार झेल रहा है, जबकि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए भारत को नए बाजारों की तलाश है। यही मौका है, जब दोनों देश अपने व्यापारिक संबंधों को नया आयाम दे सकते हैं। 2024-25 में भारत-रूस के बीच 68.7 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था।
संवाद अच्छा: कुछ दिनों पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने पूतिन से फोन पर बात की थी और उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया था। पूतिन का भारत दौरा इसी साल के आखिर में प्रस्तावित है। इससे पहले वह दिसंबर 2021 में नई दिल्ली में आयोजित भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आए थे। फिर इस महीने के आखिर में शंघाई को-ऑपरेशन समिट में भी मोदी और पूतिन की मुलाकात की संभावना है। आशा है कि दोनों देश आपसी संबंधों को ऐसे मंचों के जरिये और आगे ले जाएंगे।
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