देव दीपावली, देवताओं का दिव्य दीपोत्सव- कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनुष्य दीप जलाकर दीपावली मनाते हैं और मनुष्यों की दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा को देवों की दीपावली होती है। कार्तिक माह का सबसे पवित्र दिन कार्तिक पूर्णिमा है, क्योंकि इस दिन देवलोक में दीपोत्सव मनाया जाता है। मनुष्यों की भांति देवता भी दीप जलाकर दीपोत्सव मनाते हैं। देव दीपावली पूर्णिमा के दिन कार्तिक के महीने में मनाया जाता है और यह देवताओं या परमेश्वर की दीपावली है।
देव दीपावली का महत्व- देव दीपावली, कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस दिन देवलोक में भी दीप जलाए जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार के पश्चात राजा बलि से पृथ्वी को मुक्त कर बैकुंठ लौटने का उत्सव मनाया था। उनके स्वागत में देवताओं ने दीप जलाए थे। एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक तीन दैत्यों का वध कर तीन लोकों को आतंक से मुक्त कराया था, इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
पूजन-विधान और परंपराएं- देव दीपावली के अवसर पर घर-घर में, मंदिरों में, तथा जलाशयों, तालाबों और घाटों पर दीप जलाए जाते हैं। विशेष रूप से तुलसी माता के समीप दीपदान का अत्यधिक महत्व बताया गया है। वधुएं और गृहिणियां तालाबों, सरोवरों एवं कुण्डों में दीपदान कर गृह-समृद्धि और सौभाग्य की कामना करती हैं। संध्या समय जब दीपों की झिलमिलाहट चंद्रमा की उजली छटा से मिलती है, तब वातावरण एक दिव्य और अलौकिक आभा से भर उठता है।
क्या करें प्रार्थना- देव दीपावली के शुभ मुहूर्त में अपने इष्ट देवता के समक्ष अथवा मन्दिर में देसी घी का दीपक जलाकर आंख बंदकर, हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि, ‘हे प्रभु! हमारे जीवन में सुख-समृद्धि, लक्ष्मी एवं ऐश्वर्य की वृद्धि करें।’ सच्चे मन से प्रार्थना और दान-पुण्य से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी दीपों का प्रकाश वातावरण को शुद्ध करता है और रोगाणुओं का नाश करता है। सच्चे मन से की गई प्रार्थना को देव दीपावली के दिन देवतागण तथास्तु करते हैं। अगर दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा में कोई त्रुटि हो गई हो तो देवी दीपावली के दिन पूजन कर मां लक्ष्मी सहित विष्णु भगवान का आशीष इस दिन अवश्य प्राप्त करें।
देव दीपावली का महत्व- देव दीपावली, कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस दिन देवलोक में भी दीप जलाए जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार के पश्चात राजा बलि से पृथ्वी को मुक्त कर बैकुंठ लौटने का उत्सव मनाया था। उनके स्वागत में देवताओं ने दीप जलाए थे। एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक तीन दैत्यों का वध कर तीन लोकों को आतंक से मुक्त कराया था, इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
पूजन-विधान और परंपराएं- देव दीपावली के अवसर पर घर-घर में, मंदिरों में, तथा जलाशयों, तालाबों और घाटों पर दीप जलाए जाते हैं। विशेष रूप से तुलसी माता के समीप दीपदान का अत्यधिक महत्व बताया गया है। वधुएं और गृहिणियां तालाबों, सरोवरों एवं कुण्डों में दीपदान कर गृह-समृद्धि और सौभाग्य की कामना करती हैं। संध्या समय जब दीपों की झिलमिलाहट चंद्रमा की उजली छटा से मिलती है, तब वातावरण एक दिव्य और अलौकिक आभा से भर उठता है।
क्या करें प्रार्थना- देव दीपावली के शुभ मुहूर्त में अपने इष्ट देवता के समक्ष अथवा मन्दिर में देसी घी का दीपक जलाकर आंख बंदकर, हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि, ‘हे प्रभु! हमारे जीवन में सुख-समृद्धि, लक्ष्मी एवं ऐश्वर्य की वृद्धि करें।’ सच्चे मन से प्रार्थना और दान-पुण्य से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी दीपों का प्रकाश वातावरण को शुद्ध करता है और रोगाणुओं का नाश करता है। सच्चे मन से की गई प्रार्थना को देव दीपावली के दिन देवतागण तथास्तु करते हैं। अगर दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा में कोई त्रुटि हो गई हो तो देवी दीपावली के दिन पूजन कर मां लक्ष्मी सहित विष्णु भगवान का आशीष इस दिन अवश्य प्राप्त करें।
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