गाजियाबाद: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरापुरम के गांव मोहिद्दीनपुर कनावनी में जीडीए की जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया पर सवाल उठा दिया है। कोर्ट ने हातम सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ किया कि अगर अधिग्रहण की प्रक्रिया सही नहीं थी तो जमीन मालिकों को बेहतर मुआवजा पाने का हक है। साथ ही यह कहा कि जीडीए जमीन का अधिग्रहण कर सकता है। बताया जा रहा है कि किसान सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। वह जमीन को जीडीए के अधिग्रहण से मुक्त करवाना चाहते हैं। जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है और मुआवजे में उन्हें कम रकम मिलेगी।
मामला मोहिद्दीनपुर कनावनी की 229 एकड़ जमीन अधिग्रहण से जुड़ा है। जीडीए एक नियोजित आवासीय योजना बनाने के लिए इसे लेना चाहता था। 2004 और 2005 में अधिग्रहण के लिए दो नोटिस निकाले गए थे। इन नोटिस में सबसे बड़ी गड़बड़ी यह थी कि जमीन मालिकों को आपत्ति दर्ज कराने का मौका नहीं दिया गया। इस पर जमीन मालिक हातम सिंह व अन्य (लगभग 30 लोग) कोर्ट पहुंच गए। हाई कोर्ट ने 2016 में अधिग्रहण के नोटिस रद्द कर दिए।
सुप्रीम कोर्ट तक गया मामला
जीडीए सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने जीडीए को नए दस्तावेज पेश करने की इजाजत दी और मामले को फिर से हाई कोर्ट भेज दिया। हाई कोर्ट ने पाया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया में ढिलाई बरती गई। जीडीए ने जमीन खरीदने का फैसला जून 2001 में किया, लेकिन अधिग्रहण का पहला नोटिस अक्टूबर 2004 में जारी हुआ।
अधिग्रहण रद्द नहीं, पर नए रेट पर होगी पेमेंटहाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब इतने सालो बाद पूरे अधिग्रहण को रद्द करना सही नहीं होगा। अदालत ने बीच का रास्ता निकालते हुए जमीन मालिकों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जिन जमीन मालिकों ने केस लड़ा है, उनको ज्यादा फायदे वाले कानून के तहत मुआवजा दिया जाएगा। यह मुआवजा जनवरी 2014 की दर के हिसाब से मिलेगा। कोर्ट ने जीडीए को विकल्प भी दिया है कि अगर ज्यादा मुआवजा देना भारी पड़ता है, तो वे जमीन वापस कर सकते हैं। कुल खर्च 3200 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। जीडीए वीसी अतुल वत्स ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा। काफी समय से चल रही लड़ाई में जीडीए की जीत हुई है।
मामला मोहिद्दीनपुर कनावनी की 229 एकड़ जमीन अधिग्रहण से जुड़ा है। जीडीए एक नियोजित आवासीय योजना बनाने के लिए इसे लेना चाहता था। 2004 और 2005 में अधिग्रहण के लिए दो नोटिस निकाले गए थे। इन नोटिस में सबसे बड़ी गड़बड़ी यह थी कि जमीन मालिकों को आपत्ति दर्ज कराने का मौका नहीं दिया गया। इस पर जमीन मालिक हातम सिंह व अन्य (लगभग 30 लोग) कोर्ट पहुंच गए। हाई कोर्ट ने 2016 में अधिग्रहण के नोटिस रद्द कर दिए।
सुप्रीम कोर्ट तक गया मामला
जीडीए सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने जीडीए को नए दस्तावेज पेश करने की इजाजत दी और मामले को फिर से हाई कोर्ट भेज दिया। हाई कोर्ट ने पाया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया में ढिलाई बरती गई। जीडीए ने जमीन खरीदने का फैसला जून 2001 में किया, लेकिन अधिग्रहण का पहला नोटिस अक्टूबर 2004 में जारी हुआ।
अधिग्रहण रद्द नहीं, पर नए रेट पर होगी पेमेंटहाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब इतने सालो बाद पूरे अधिग्रहण को रद्द करना सही नहीं होगा। अदालत ने बीच का रास्ता निकालते हुए जमीन मालिकों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जिन जमीन मालिकों ने केस लड़ा है, उनको ज्यादा फायदे वाले कानून के तहत मुआवजा दिया जाएगा। यह मुआवजा जनवरी 2014 की दर के हिसाब से मिलेगा। कोर्ट ने जीडीए को विकल्प भी दिया है कि अगर ज्यादा मुआवजा देना भारी पड़ता है, तो वे जमीन वापस कर सकते हैं। कुल खर्च 3200 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। जीडीए वीसी अतुल वत्स ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा। काफी समय से चल रही लड़ाई में जीडीए की जीत हुई है।
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