पंकज मिश्रा, हमीरपुरः उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में यमुना नदी में मोर पंखों के साथ स्नान करते ही मौनियों का छत्तीस घंटे का उपवास शुरू हो गया है। आज दिन भर यमुना नदी और अन्य सरोवरों के किनारे श्रीकृष्ण के भक्तों का मेला लगा रहा। बुंदेलखंड के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, ललितपुर, झांसी, जालौन और आसपास के तमाम इलाकों में वृंदावन की तर्ज पर दिवाली नृत्य खेलने की परंपरा सैकड़ों सालों से कायम है। अमावस्या के दिन श्रीकृष्ण की भक्ति करने वाले यमुना नदी में स्नान कर विशेष अनुषठान करते है।
मौन साधक रवि, छोटू पाल, अभय, शिवप्रसाद समेत तमाम श्रीकृष्ण के दीवानों ने बताया कि यह अनुष्ठान बहुत की कठिन है। इसलिए, मौन चराने वालों को कई धार्मिक, सामाजिक नियमों से बंधना होता है। लोगों ने बताया कि श्रीकृष्ण की भक्ति करने वालों को मौन चराने के लिए दीपावली के दिन छत्तीस घंटे का उपवास करना होता है। उसे पूरी तरह से सात्विक रहने के साथ ही नंगे पांव ही जगंल में रहना पड़ता है।
लोगों का कहना है कि अगर कोई नियम तोड़ता है तो उसके अनुष्ठान का पुण्य व्यर्थ चला जाता है। आज दीपावली के दिन शहर से लेकर गांवों तक के मौन साधकों ने बड़ी संख्या में हमीरपुर आकर यमुना नदी में स्नान किया। मोर पंखों को भी पवित्र नदी में स्नान कराने के बाद मौन साधकों ने पतालेश्वर मंदिर में दिवाली नृत्य भी खेली, जिसे देखने के लिए स्थानीय लोगों की भीड़ जुटी।
नियम तोड़ने पर मोर पंखों से पिटाईमौन साधक बाबूलाल यादव समेत तमाम बुजुर्गों ने बताया कि मौन साधक चौदह साल तक अनुष्ठान करते है। श्रीकृष्ण की साधना के लिए तेरह सालों तक दीपावली से लेकर एकादशी तक मौन चराने वाले विशेष अनुष्ठान करते है। चौदहवें साल मौन साधक चित्रकूट या वृंदावन जाकर अपना अनुष्ठान पूरा करते है। मौन साधकों ने बताया कि छत्तीस घंटे के लिए मौन साधकों को उपवास रखकर घर से बाहर रहना पड़ता है। उन्हें गौधूल की बेला में घर में प्रवेश मिलता है। जंगल में यदि श्रीकृष्ण की भक्ति करने पर यदि गलती से भी नियम टूटता है तो मौन साधक उसे मोर पंखों से पिटाई करते है।
सालों से बंद थी परंपरा, हुई शुरूहमीरपुर जिले के कुरारा क्षेत्र के बचरौली गांव में सालों से मौन चराने की परंपरा बंद हो गई थी, जिसे गांव के समाजसेवी एवं पूर्व सरपंच हेम सिंह ने आज फिर से शुरू कराई है। समाजसेवी ने बताया कि किन्हीं कारणों से इस गांव दिवाली त्योहार पर मौन चराने की परंपरा ठप हो गई थी। आज इसका शुभारंभ कर दिया गया है। गांव के 15 लोगों को मौन चराने के लिए तैयार किया गया।
हेम सिंह ने बताया कि आज मौन साधकों ने यमुना नदी में मोर पंखों सहित स्नान कर मौन चराने की परम्परा का आगाज किया है। मौन साधकों ने मंदिर के पास दिवाली नृत्य खेली। इसके बाद मौन चराने के लिए जंगल चले गए।
मौन साधक रवि, छोटू पाल, अभय, शिवप्रसाद समेत तमाम श्रीकृष्ण के दीवानों ने बताया कि यह अनुष्ठान बहुत की कठिन है। इसलिए, मौन चराने वालों को कई धार्मिक, सामाजिक नियमों से बंधना होता है। लोगों ने बताया कि श्रीकृष्ण की भक्ति करने वालों को मौन चराने के लिए दीपावली के दिन छत्तीस घंटे का उपवास करना होता है। उसे पूरी तरह से सात्विक रहने के साथ ही नंगे पांव ही जगंल में रहना पड़ता है।
लोगों का कहना है कि अगर कोई नियम तोड़ता है तो उसके अनुष्ठान का पुण्य व्यर्थ चला जाता है। आज दीपावली के दिन शहर से लेकर गांवों तक के मौन साधकों ने बड़ी संख्या में हमीरपुर आकर यमुना नदी में स्नान किया। मोर पंखों को भी पवित्र नदी में स्नान कराने के बाद मौन साधकों ने पतालेश्वर मंदिर में दिवाली नृत्य भी खेली, जिसे देखने के लिए स्थानीय लोगों की भीड़ जुटी।
नियम तोड़ने पर मोर पंखों से पिटाईमौन साधक बाबूलाल यादव समेत तमाम बुजुर्गों ने बताया कि मौन साधक चौदह साल तक अनुष्ठान करते है। श्रीकृष्ण की साधना के लिए तेरह सालों तक दीपावली से लेकर एकादशी तक मौन चराने वाले विशेष अनुष्ठान करते है। चौदहवें साल मौन साधक चित्रकूट या वृंदावन जाकर अपना अनुष्ठान पूरा करते है। मौन साधकों ने बताया कि छत्तीस घंटे के लिए मौन साधकों को उपवास रखकर घर से बाहर रहना पड़ता है। उन्हें गौधूल की बेला में घर में प्रवेश मिलता है। जंगल में यदि श्रीकृष्ण की भक्ति करने पर यदि गलती से भी नियम टूटता है तो मौन साधक उसे मोर पंखों से पिटाई करते है।
सालों से बंद थी परंपरा, हुई शुरूहमीरपुर जिले के कुरारा क्षेत्र के बचरौली गांव में सालों से मौन चराने की परंपरा बंद हो गई थी, जिसे गांव के समाजसेवी एवं पूर्व सरपंच हेम सिंह ने आज फिर से शुरू कराई है। समाजसेवी ने बताया कि किन्हीं कारणों से इस गांव दिवाली त्योहार पर मौन चराने की परंपरा ठप हो गई थी। आज इसका शुभारंभ कर दिया गया है। गांव के 15 लोगों को मौन चराने के लिए तैयार किया गया।
हेम सिंह ने बताया कि आज मौन साधकों ने यमुना नदी में मोर पंखों सहित स्नान कर मौन चराने की परम्परा का आगाज किया है। मौन साधकों ने मंदिर के पास दिवाली नृत्य खेली। इसके बाद मौन चराने के लिए जंगल चले गए।
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