लेखक: मनोज जोशी
श्रीलंका ने लक्ष्य बहुत ज्यादा नहीं दिया था, लेकिन उस तक पहुंचने के लिए ही पाकिस्तान को पूरा दम लगाना पड़ा। खैर, सुपर फोर में पहली जीत तो मिली और इसके साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि एशिया कप के फाइनल में भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमें एक बार फिर आमने-सामने हो सकती हैं। लेकिन क्या इससे मुकाबले को लेकर उत्सुकता बढ़नी चाहिए?
खाली स्टेडियम: क्रिकेट की दुनिया में कभी सबसे बड़ी मानी जाती थी भारत-पाकिस्तान राइवलरी। मुकाबले की उल्टी गिनती महीनों पहले शुरू हो जाती और मैच के टिकट चंद मिनटों में बिक जाते। स्टेडियम के अंदर और बाहर एक-सा नजारा होता। और रेवेन्यू इतना कि पूरा टूर्नामेंट एक तरफ और यह मैच एक तरफ। एशिया कप की ही बात करें तो यहां से होने वाली कमाई से असोसिएट टीमों को अपना इंफ्रा सुधारने में बहुत मदद मिली। लेकिन, अब यह राइवलरी खत्म होती दिख रही है। इस एशिया कप में 15 दिनों में भी टिकट नहीं बिके और काफी संख्या में प्रीमियम सीटें खाली रह गईं।
आकर्षण क्यों नहीं: क्या पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर की वजह से दर्शक कम आ रहे या फिर विराट कोहली, रोहित शर्मा, बाबर आजम की गैरमौजूदगी इसका कारण है? भारत-पाकिस्तान मुकाबलों का एकतरफा होना वजह है या फिर असोसिएट टीमों की मौजूदगी से रोमांच कम हुआ है? टीम इंडिया जब इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 सीरीज खेलने उतरी, तो वहां भी कई बड़े नाम मौजूद नहीं थे। इसके बावजूद सीरीज को लेकर जबरदस्त रोमांच देखने को मिला। इसका मतलब कि एशिया कप के आकर्षण खोने की वजह किन्हीं खास खिलाड़ियों की मौजूदगी भर नहीं हो सकती। हां, बाकी सारी वजहें जायज लगती हैं।
जीत या तुक्का: भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने ठीक कहा है कि अगर दोनों मुल्कों की क्रिकेट टीमों में फासला 8-7 का होता तो आप इसे राइवलरी कह सकते हैं, लेकिन अगर यह फासला 12-3 का है तो राइवलरी कैसी? पाकिस्तान के तीन मैच जीतने को फ्लूक कहना ही ठीक होगा। जब मैच शुरू होने के पहले ही परिणाम का पता चल जाए, तो उसे प्रतिद्वंद्विता नहीं कह सकते। सच यह है कि 2022 में दुबई में खेले गए एशिया कप मैच के बाद से अब तक पाकिस्तान वनडे और टी-20 फॉर्मेट में टीम इंडिया से लगातार 7 मैच हार चुका है। मौजूदा टूर्नामेंट में भी भारत के साथ उसकी दोनों भिड़ंत एकतरफा रही हैं। पाकिस्तान कह रहा है कि वह दुबई में हुए पिछले मुकाबले में पहले 10 ओवर अच्छा खेला, पर क्या इतना पर्याप्त है? मैच जीतने के लिए पूरे मुकाबले में अच्छा खेलना होता है।
कांटे के कम मैच: पिछले 20 वर्षों में दोनों मुल्कों के दरम्यान हुए कांटे के मुकाबलों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है। टफ मैच के नाम पर तो स्थिति और भी खराब है। दो मैच याद आते हैं - 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप का फाइनल, 2014 के एशिया कप का फाइनल। इसमें मेलबर्न में टी-20 वर्ल्ड कप का वह मैच भी जोड़ा जा सकता है, जिसे विराट कोहली ने पाकिस्तान के जबड़े से छीन लिया था।
PCB में राजनीतिक दखल: खराब घरेलू सिस्टम की वजह से पाकिस्तानी टीम में टैलंट नहीं आ रहा। औसत प्रतिभाओं के दम पर आप मैच के एक हिस्से में तो अच्छा कर सकते हैं, पर जीत हासिल करना मुश्किल है। BCCI में रिटायर्ड क्रिकेटरों के अध्यक्ष बनने की परंपरा है, जबकि उनके यहां PCB को देश का गृह मंत्री संभाल रहा है। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड में इस समय कई राजनेता मौजूद हैं, फिर खेल में बेहतरी की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
परफेक्ट राइवलरी: हाल में हुई भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज के एक-एक लम्हे को यादगार कहा गया। इसी तरह भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पिछले 25 साल में जितनी सीरीज हुई हैं, उन्हें परफेक्ट राइवलरी का नाम दिया गया। भारत-पाकिस्तान मुकाबलों की कहानी बिल्कुल अलग है। एक टीम टॉप पर है और दूसरी सातवें-आठवें नंबर पर।
निचले टियर की टीम: दोनों देशों के बीच लंबे समय से टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला गया। अगर होता तो वहां भी जीत-हार का बड़ा अंतर दिखाई देता। पिछली वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में पाकिस्तान लुढ़कते-लुढ़कते आखिरी पायदान पर पहुंच गया था। अगर ICC टू टियर सिस्टम लागू करती है, तो पाकिस्तान निचले टियर में होगा। हकीकत यही है कि पाकिस्तान की क्रिकेट टीम इस समय अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है।
(लेखक टीवी कमेंटेटर और वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं)
श्रीलंका ने लक्ष्य बहुत ज्यादा नहीं दिया था, लेकिन उस तक पहुंचने के लिए ही पाकिस्तान को पूरा दम लगाना पड़ा। खैर, सुपर फोर में पहली जीत तो मिली और इसके साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि एशिया कप के फाइनल में भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमें एक बार फिर आमने-सामने हो सकती हैं। लेकिन क्या इससे मुकाबले को लेकर उत्सुकता बढ़नी चाहिए?
खाली स्टेडियम: क्रिकेट की दुनिया में कभी सबसे बड़ी मानी जाती थी भारत-पाकिस्तान राइवलरी। मुकाबले की उल्टी गिनती महीनों पहले शुरू हो जाती और मैच के टिकट चंद मिनटों में बिक जाते। स्टेडियम के अंदर और बाहर एक-सा नजारा होता। और रेवेन्यू इतना कि पूरा टूर्नामेंट एक तरफ और यह मैच एक तरफ। एशिया कप की ही बात करें तो यहां से होने वाली कमाई से असोसिएट टीमों को अपना इंफ्रा सुधारने में बहुत मदद मिली। लेकिन, अब यह राइवलरी खत्म होती दिख रही है। इस एशिया कप में 15 दिनों में भी टिकट नहीं बिके और काफी संख्या में प्रीमियम सीटें खाली रह गईं।
आकर्षण क्यों नहीं: क्या पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर की वजह से दर्शक कम आ रहे या फिर विराट कोहली, रोहित शर्मा, बाबर आजम की गैरमौजूदगी इसका कारण है? भारत-पाकिस्तान मुकाबलों का एकतरफा होना वजह है या फिर असोसिएट टीमों की मौजूदगी से रोमांच कम हुआ है? टीम इंडिया जब इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 सीरीज खेलने उतरी, तो वहां भी कई बड़े नाम मौजूद नहीं थे। इसके बावजूद सीरीज को लेकर जबरदस्त रोमांच देखने को मिला। इसका मतलब कि एशिया कप के आकर्षण खोने की वजह किन्हीं खास खिलाड़ियों की मौजूदगी भर नहीं हो सकती। हां, बाकी सारी वजहें जायज लगती हैं।
जीत या तुक्का: भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने ठीक कहा है कि अगर दोनों मुल्कों की क्रिकेट टीमों में फासला 8-7 का होता तो आप इसे राइवलरी कह सकते हैं, लेकिन अगर यह फासला 12-3 का है तो राइवलरी कैसी? पाकिस्तान के तीन मैच जीतने को फ्लूक कहना ही ठीक होगा। जब मैच शुरू होने के पहले ही परिणाम का पता चल जाए, तो उसे प्रतिद्वंद्विता नहीं कह सकते। सच यह है कि 2022 में दुबई में खेले गए एशिया कप मैच के बाद से अब तक पाकिस्तान वनडे और टी-20 फॉर्मेट में टीम इंडिया से लगातार 7 मैच हार चुका है। मौजूदा टूर्नामेंट में भी भारत के साथ उसकी दोनों भिड़ंत एकतरफा रही हैं। पाकिस्तान कह रहा है कि वह दुबई में हुए पिछले मुकाबले में पहले 10 ओवर अच्छा खेला, पर क्या इतना पर्याप्त है? मैच जीतने के लिए पूरे मुकाबले में अच्छा खेलना होता है।
कांटे के कम मैच: पिछले 20 वर्षों में दोनों मुल्कों के दरम्यान हुए कांटे के मुकाबलों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है। टफ मैच के नाम पर तो स्थिति और भी खराब है। दो मैच याद आते हैं - 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप का फाइनल, 2014 के एशिया कप का फाइनल। इसमें मेलबर्न में टी-20 वर्ल्ड कप का वह मैच भी जोड़ा जा सकता है, जिसे विराट कोहली ने पाकिस्तान के जबड़े से छीन लिया था।
PCB में राजनीतिक दखल: खराब घरेलू सिस्टम की वजह से पाकिस्तानी टीम में टैलंट नहीं आ रहा। औसत प्रतिभाओं के दम पर आप मैच के एक हिस्से में तो अच्छा कर सकते हैं, पर जीत हासिल करना मुश्किल है। BCCI में रिटायर्ड क्रिकेटरों के अध्यक्ष बनने की परंपरा है, जबकि उनके यहां PCB को देश का गृह मंत्री संभाल रहा है। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड में इस समय कई राजनेता मौजूद हैं, फिर खेल में बेहतरी की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
परफेक्ट राइवलरी: हाल में हुई भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज के एक-एक लम्हे को यादगार कहा गया। इसी तरह भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पिछले 25 साल में जितनी सीरीज हुई हैं, उन्हें परफेक्ट राइवलरी का नाम दिया गया। भारत-पाकिस्तान मुकाबलों की कहानी बिल्कुल अलग है। एक टीम टॉप पर है और दूसरी सातवें-आठवें नंबर पर।
निचले टियर की टीम: दोनों देशों के बीच लंबे समय से टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला गया। अगर होता तो वहां भी जीत-हार का बड़ा अंतर दिखाई देता। पिछली वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में पाकिस्तान लुढ़कते-लुढ़कते आखिरी पायदान पर पहुंच गया था। अगर ICC टू टियर सिस्टम लागू करती है, तो पाकिस्तान निचले टियर में होगा। हकीकत यही है कि पाकिस्तान की क्रिकेट टीम इस समय अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है।
(लेखक टीवी कमेंटेटर और वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं)
You may also like
युवाओं को पथभ्रष्ट करने के प्रयास में विदेशी शक्तियां: दोनेरिया
BJP Appointed Election In-Charge For 3 States : बीजेपी ने तीन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव के लिए नियुक्त किए प्रभारी और सह प्रभारी, धर्मेंद्र प्रधान को बिहार की जिम्मेदारी
शादी के डेढ़ साल बाद पति` का सच आया सामने पत्नी के उड़े होश बोलीः मेरा तो बेटा भी
इस वर्ष अप्रैल से अगस्त में भारत ने कुल 27 गीगावाट रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता जोड़ी : रिपोर्ट
स्वच्छता को अपनी आदत में शामिल करें, दिल्ली को स्वच्छ और सुंदर बनाएं : रेखा गुप्ता