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China Gold Reserves: चीन की यह भूख बढ़ा रही भारत की टेंशन, इस होड़ के पीछे प्लान क्या है?

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नई दिल्‍ली: साल 2025 में सोने की कीमतें रिकॉर्ड तोड़ रही हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह तेजी अभी और बढ़ेगी। इस साल पहले ही सोना 50% से ज्‍यादा बढ़ चुका है। इससे यह लंदन में 4,000 डॉलर प्रति औंस के पार चला गया है। इसके पीछे कई वजहें हैं। बढ़ती भू-राजनीतिक चिंताएं, अमेरिका में लंबा सरकारी शटडाउन और डॉलर में निवेशकों का घटता भरोसा। चीन का केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (PBoC) लगातार 11 महीनों से सोना खरीद रहा है। यह दिखाता है कि चीन अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है। सितंबर में ही पीबीओसी ने 40,000 औंस सोना खरीदा। इससे उसका कुल सोने का भंडार 7.40 करोड़ औंस हो गया। इसकी कीमत 283.3 अरब डॉलर है।

हालांकि, चीन की यह भूख भारत की टेंशन बढ़ा सकती है। भारत दुनिया में सोने के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है। अपनी ज्‍यादातर मांग को पूरा करने के लिए वह आयात पर निर्भर है। सोने की कीमतें बढ़ने पर भारत को उतना ही सोना खरीदने के लिए ज्‍यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। इससे भारत का कुल आयात बिल बढ़ जाएगा। चीन की सोना खरीदने की होड़ अभी थमती भी नहीं दिख रही है। भारत के ऊंचे आयात बिल से व्यापार घाटा बढ़ सकता है। इससे रुपया डॉलर के मुकाबले और कमजोर हो सकता है।

क्‍यों खरीद पर ब्रेक नहीं लगा रहा चीन?
अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट के चीफ इकोनॉमिस्‍ट टोरस्टेन स्लोक के अनुसार, चीन सोने की इस ऐतिहासिक तेजी का सबसे बड़ा फैक्‍टर बनकर उभरा है। उन्होंने अपने एक लेख में बताया कि चीन का असर सिर्फ केंद्रीय बैंक की खरीद तक सीमित नहीं है। यह आम लोगों की सोने की खरीदारी, आर्बिट्रेज ट्रेडिंग (कीमतों के अंतर से मुनाफा कमाना) और संस्थागत निवेशकों की ओर से सोने में निवेश तक फैला हुआ है।


वेल्‍थ और स्टॉक विश्लेषक अक मंधान का कहना है कि चीन का लगातार सोना खरीदना छोटी अवधि की योजना नहीं है। यह एक सोची-समझी लंबी अवधि की रणनीति है। उन्होंने कहा, 'अगले दो सालों में सोना 1,77,000 रुपये प्रति तोला तक पहुंच जाएगा। यही वजह है कि चीन सोने की रिकॉर्ड तोड़ तेजी के बाद भी खरीद रहा है।' मंधान ने समझाया कि चीन की यह लगातार खरीद अमेरिकी संपत्तियों से हटकर सोने जैसी 'वास्तविक' मूल्यवान संपत्तियों की ओर बड़े बदलाव को दर्शाती है। खासकर तब जब वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।

बड़े निवेश बैंक भी इस उम्मीद को साझा करते हैं। गोल्डमैन सैक्स ने दिसंबर 2026 के लिए सोने का अपना अनुमान बढ़ाकर 4,900 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस कर दिया है। वहीं, अरबपति निवेशक रे डालियो और केन ग्रिफिन ने वित्तीय अस्थिरता और वैश्वीकरण के कम होने के इस दौर में सोने को 'सबसे अच्छा बचाव' बताया है।

चीन की रणनीति क्यों मायने रखती है?एक्‍सपर्ट्स ने 10 प्रमुख कारण बताए हैं कि क्यों चीन युआन के कमजोर होने के बावजूद आक्रामक तरीके से सोना खरीद रहा है।


चीन का बड़ा प्‍लान
चीन की यह रणनीति दोहरी वित्तीय चाल है। एक तरफ वह एक्‍सपोर्ट और लिक्विडिटी को बढ़ावा देने के लिए युआन को कमजोर कर रहा है। दूसरी तरफ, वित्तीय जोखिमों से बचाव के लिए सोने के भंडार को बढ़ा रहा है। यह दोहरी नीति बीजिंग को मजबूत बनाती है। साथ ही पश्चिम-प्रभुत्व वाले वित्तीय प्रणालियों से उसके धीमे बदलाव का संकेत देती है।

जैसे-जैसे अमेरिका का वित्तीय घाटा बढ़ रहा है, डॉलर कमजोर हो रहा है। दुनियाभर के केंद्रीय बैंक अपने निवेश में विविधता लाने में जुटे हैं। सोने की लंबी अवधि की चाल मजबूत दिख रही है।

भारत के लिए इसका मतलब समझ‍िएभारतीय निवेशकों के लिए इसका मतलब घरेलू सोने की कीमतों में भारी उछाल हो सकता है, जो करेंसी के प्रभाव से और बढ़ जाएगा। सोना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए दोहरी चुनौती पेश करेगा। बेशक, यह निवेशकों को भारी लाभ दे सकता है। लेकिन, दूसरी ओर यह देश के व्यापार घाटे को बढ़ाएगा और संभावित रूप से उत्पादक क्षेत्रों से पूंजी को बाहर खींच लेगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लाने के लिए सोना खरीदता है। अगर वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंक (जैसे चीन) सोना खरीदते हैं तो वैश्विक कीमत बढ़ेगी। इससे आरबीआई के लिए भी सोना खरीदना महंगा हो जाएगा। भारत में सोना एक सामाजिक और सांस्कृतिक जरूरत है। खासकर त्योहारों (जैसे धनतेरस, दिवाली) और शादियों के दौरान। रिकॉर्ड-तोड़ कीमतों के कारण मांग कुछ हद तक कम हो सकती है या उपभोक्ता कम सोना खरीदेंगे।
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