कब्ज यानी पेट का साफ न होना एक आम, लेकिन गंभीर समस्या है, जिसे अक्सर लोग नज़रअंदाज कर देते हैं। आधुनिक जीवनशैली, अनियमित खानपान, फास्ट फूड, कम पानी पीना और तनाव के कारण यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।
आंकड़ों के अनुसार, हर 3 में से 1 व्यक्ति किसी न किसी रूप में कब्ज से जूझ रहा है। कब्ज तब होती है जब आंतों की गति धीमी पड़ जाती है और मल त्याग नियमित या सहज नहीं हो पाता। इस स्थिति में मल इकट्ठा हो जाता है, पेट पूरी तरह से साफ नहीं लगता और व्यक्ति को भारीपन, पेट में जलन, गैस, सिरदर्द और पूरे दिन थकान जैसी परेशानियां महसूस हो सकती हैं।
यदि इसे लंबे समय तक अनदेखा किया जाए, तो इसके दुष्प्रभाव पूरे शरीर पर दिखाई देने लगते हैं। लगातार कब्ज़ रहने पर यह हृदय रोग, डायबिटीज़, थायरॉइड और मानसिक रोग जैसे डिप्रेशन तक का कारण बन सकती है। इतना ही नहीं, त्वचा रोग जैसे मुंहासे, दाग-धब्बे, एलर्जी और सोरायसिस भी कब्ज़ से जुड़े हो सकते हैं।
महिलाओं में यह समस्या और अधिक देखने को मिलती है, क्योंकि हॉर्मोनल बदलाव, प्रेग्नेंसी, पीरियड्स और मेनोपॉज के दौरान आंतों की गति प्रभावित होती है। वहीं, लंबे समय तक कब्ज रहने से शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम का अवशोषण कम हो जाता है, जिससे हड्डियां कमजोर हो सकती हैं।
आधुनिक शोध बताते हैं कि गट-ब्रेन ऐक्सिस के कारण कब्ज का सीधा असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है, जिससे चिंता, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। जब मल लंबे समय तक आंतों में रुका रहता है तो उसमें से विषैले पदार्थ वापस खून में पहुंच जाते हैं, जिसे ऑटो-इंटॉक्सिकेशन कहा जाता है। इससे पूरे शरीर की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
पुराने ग्रंथों में भी उल्लेख है कि कब्ज पेट में दबाव और गैस पैदा करती है, जिससे फेफड़ों की फैलने की क्षमता कम हो सकती है और सांस फूलने या अस्थमा जैसी समस्या बढ़ सकती है। इसके प्रमुख कारणों में फाइबर की कमी, तैलीय व तली-भुनी चीजों का अधिक सेवन, पानी की कमी, मानसिक तनाव, नींद की कमी, शारीरिक गतिविधि का अभाव और कुछ दवाइयां जैसे आयरन सप्लिमेंट्स और पेनकिलर्स शामिल हैं।
आयुर्वेद में कब्ज को वात दोष की असंतुलित स्थिति माना गया है। बड़ी आंत ही वात का मुख्य स्थान है, और जब आंतें सूख जाती हैं, तो मल कठोर होकर अटक जाता है। यही आगे चलकर अर्श (पाइल्स), भगंदर, एनल फिशर और त्वचा रोगों का कारण बन सकता है।
कब्ज से राहत पाने के लिए घरेलू और आयुर्वेदिक नुस्खे बेहद कारगर हैं। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी में नींबू डालकर पीना आंतों की सफाई करता है। त्रिफला चूर्ण को रात में गुनगुने पानी के साथ लेने से पाचन तंत्र सक्रिय होता है। इसबगोल की भूसी तुरंत राहत देती है, जबकि अंजीर और किशमिश प्राकृतिक फाइबर व लैक्सेटिव का काम करते हैं। रात में गर्म दूध में घी डालकर पीना भी आंतों को चिकनाई प्रदान कर कब्ज को जड़ से खत्म करता है।
इसके साथ ही सुबह उठकर गुनगुना पानी पीना, पर्याप्त मात्रा में 8-10 गिलास पानी रोज पीना, फाइबर युक्त आहार लेना और नियमित योगासन जैसे पवनमुक्तासन व वज्रासन करना कब्ज से स्थायी राहत के लिए आवश्यक है।
--आईएएनएस
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