पितृ पक्ष का समय चल रहा है,और जब भी पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति की बात आती है,तो बिहार के'गया'का नाम सबसे पहले आता है। माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।आमतौर पर हम यही जानते हैं कि पिंडदान का अधिकार बेटों का होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गया में राजा दशरथ का पिंडदान उनके पुत्रों ने नहीं,बल्कि उनकी बहू,यानी माता सीता ने किया था?और उस दिन कुछ ऐसा हुआ था,जिसका असर आज भी देखने को मिलता है।क्या है वह पूरी कहानी?यह कहानी उस समय की है जब भगवान राम,माता सीता और लक्ष्मण जी वनवास पर थे। पितृ पक्ष के दौरान तीनों राजा दशरथ का श्राद्ध करने के लिए गया जी पहुंचे।कहानी कुछ यूं है कि पिंडदान के लिए कुछ जरूरी सामग्री कम पड़ गई,जिसे लेने के लिए भगवान राम और लक्ष्मण जी नगर की ओर चले गए। उन्होंने सीता जी से कहा कि वे वापस आकर पिंडदान की विधि पूरी करेंगे।दोपहर का समय बीतने लगा,लेकिन राम और लक्ष्मण जी लौटे नहीं। तभी,राजा दशरथ की आत्मा वहां प्रकट हुई और उन्होंने सीता जी से कहा, "पुत्री,मुझे बहुत भूख लगी है,समय निकलता जा रहा है,मेरा पिंडदान करो।"जब सीता जी ने रेत से बनाए पिंडमाता सीता एक दुविधा में पड़ गईं। उनके पास पिंडदान की कोई सामग्री नहीं थी। तब उन्होंने एक बहुत ही अनोखा फैसला लिया। उन्होंने वहां बह रही फल्गु नदी की रेत (बालू) को हाथों में उठाया,उसके पिंड बनाए और राजा दशरथ को अर्पित कर दिए।लेकिन विधि के लिए गवाह भी तो चाहिए थे। तब उन्होंने वहां मौजूदफल्गु नदी,एक गाय,एक पीपल के पेड़ और एक ब्राह्मणको इस पिंडदान का साक्षी बनाया और कहा कि जब राम लौटेंगे तो वे गवाही देंगे।और फिर आया कहानी में ट्विस्ट...जब राम और लक्ष्मण जी वापस लौटे और सीता जी ने उन्हें पूरी बात बताई,तो उन्हें यकीन नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संभव है?तब सीता जी ने अपने चारों गवाहों को सच बताने के लिए कहा। लेकिन भगवान राम के क्रोध के डर से फल्गु नदी,पीपल के पेड़ और ब्राह्मण,तीनों झूठ बोल गए और कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।सिर्फगायने सच का साथ दिया और सिर हिलाकर बताया कि सीता जी सच कह रही हैं।जब क्रोधित सीता जी ने दिया श्रापअपने गवाहों को झूठ बोलते देख माता सीता क्रोधित हो उठीं और उन्होंने तीनों को श्राप दे दिया:फल्गु नदी को: "तुम हमेशा सतह के नीचे बहोगी,तुम्हारे ऊपर हमेशा रेत ही रहेगी।" (आज भी गया में फल्गु नदी रेत के नीचे बहती है)।पीपल के पेड़ को: "तुम हमेशा कांपते रहोगे और तुम्हारे फल कभी मीठे नहीं होंगे,कोई उन्हें खाएगा नहीं।"ब्राह्मण को: "तुम गया के ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं हो पाओगे,तुम्हें कितना भी दान-दक्षिणा मिले,तुम्हारी दरिद्रता बनी रहेगी।"और जिस गाय ने सच का साथ दिया,उसे सीता जी ने आशीर्वाद दिया कि "तुम्हारा पिछला हिस्सा हमेशा पवित्र माना जाएगा और घर-घर में तुम्हारी पूजा होगी।"इसी पौराणिक कथा की वजह से आज भी गया में फल्गु नदी के किनारे रेत के पिंड बनाकर पिंडदान करने की परंपरा निभाई जाती है,जो हमें माता सीता के उस त्याग और शक्ति की याद दिलाती है।
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