लाइव हिंदी खबर :-भारत के मध्य में बसा मध्यप्रदेश एक समृद्ध शैव परंपरा का गवाह रहा है, जो सदियों से जीवित है। यहां कुल 12 ज्योतिर्लिंगों में से दो, श्री महाकालेश्वर और श्री ओंकारेश्वर, स्थित हैं। यह परंपरा प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में फैली हुई है, जिसका प्रमाण अनेक शिव मंदिरों और मूर्तियों में मिलता है।
भगवान शिव की उपासना करने वाले अनुयायियों को शैवधर्म के अनुयायी कहा जाता है।
भगवान शिव, जो भूतभावन और परम कल्याणकारी माने जाते हैं, मध्यप्रदेश के लोगों के बीच अत्यंत प्रिय देवता रहे हैं। पुरातात्विक अनुसंधानों से यह स्पष्ट होता है कि पूर्व-वैदिक काल में भी शिव की पूजा का प्रचलन था। चेदि और अवंति साम्राज्य में शिव की पूजा की लोकप्रियता के प्रमाण भी मिले हैं।
महेश्वर, जो मां नर्मदा के किनारे स्थित है, शैव परंपरा का एक प्रमुख केंद्र रहा है। इस मंदिर का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने यहीं त्रिपुर राक्षस का वध किया था। उज्जैन भी शैव परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां श्री महाकालेश्वर शिवलिंग प्रतिष्ठित है।
शुंग-सातवाहन काल में शिव की पूजा का प्रचलन बढ़ा, और नागवंशी राजाओं ने अनेक भव्य शिव मंदिरों का निर्माण करवाया। उनके सिक्कों पर भगवान शिव के प्रतीक भी पाए जाते हैं।
उज्जैन के पिंगलेश्वर में शुंग-कुषाण काल का पंचमुखी शिवलिंग मिला है। गुप्त काल में शिव मंदिरों का निर्माण हुआ, जिसमें शिव-पार्वती, अर्धनारीश्वर और नटराज स्वरूपों की प्रतिमाएं शामिल हैं।
मध्यकाल में भी शिव की पूजा का प्रचलन जारी रहा। विभिन्न राजवंशों ने इस दौरान कई भव्य शिव मंदिरों का निर्माण किया। खजुराहो के चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण हैं।
इस प्रकार, मध्यप्रदेश में शैव परंपरा का इतिहास समृद्ध और विविधतापूर्ण है, जो भारत में शैव परंपरा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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