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आजकल हर जगह नवरात्रि का त्यौहार जोरों पर है। नवरात्रि के नौ दिनों में कई व्रत रखे जाते हैं। नौ दिन तक उपवास रखते हैं। कई लोग नौ दिनों तक चप्पल नहीं पहनते। इसके पीछे एक मान्यता है। आइए आज जानते हैं नवरात्रि में चप्पल न पहनने का असली कारण।
हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्यौहार का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। कई लोग नवरात्रि के दौरान कठोर व्रत रखते हैं। वे नंगे पैर चलते हैं। हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज और परंपराएँ हैं जिनका हम आज भी पालन करते आ रहे हैं। ये रीति-रिवाज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते हैं। आपने सोचा होगा कि लोग नवरात्रि के दौरान बिना चप्पल के क्यों चलते हैं। लेकिन इसके पीछे की परंपरा क्या है? विस्तार से जानें।
पहले के समय में चप्पलें रेशे, रबर या प्लास्टिक जैसी सामग्री से नहीं बनाई जाती थीं। उन दिनों चप्पल बनाने के लिए चमड़े का इस्तेमाल किया जाता था। चमड़ा प्राप्त करने के लिए जानवरों की बलि दी जाती थी। इस अवसर पर, नवरात्रि उत्सव के दौरान चमड़ा पहनना वर्जित माना जाता था।
पहले, देवी के मंदिर ऊँची पहाड़ियों पर स्थित होते थे। चूँकि बारिश के दिन थे, ज़मीन में पानी जमा हो जाता था और नमी बन जाती थी। मंदिरों तक पहुँचने के लिए पक्की सड़कें नहीं थीं। पगडंडियाँ थीं, इसलिए लोग ऐसी जगहों पर नंगे पैर ही जाते थे।
बिना चप्पल पहने चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय धरती गर्म होती है। इस कारण नंगे पैर चलने से मिलने वाली गर्मी शरीर तक पहुँचती है। नंगे पैर चलने से पैरों के माध्यम से एक्यूप्रेशर होता है। शरीर स्वस्थ रहता है।
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