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कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ व्रत इस वर्ष विशेष योग लेकर आ रहा है। इस वर्ष व्रत के दिन सिद्धि योग और व्यतिपात योग बन रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए और द्रौपदी ने पांडवों के लिए यह व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कठिन परिस्थितियों में भी करवा माता पति की रक्षा करती हैं और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि लाती हैं।
सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और वैवाहिक सुख के लिए यह व्रत रखती हैं। करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है। रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही जल ग्रहण किया जाता है।
करवा चौथ व्रत की विधि
करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पूर्व विशेष आहार ग्रहण करती हैं। इसके बाद वे पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं, अर्थात जल भी ग्रहण नहीं करतीं। शाम के समय वे गणेशजी, चौथ माता और करवा माता की पूजा करती हैं। रात में चंद्रमा के उदय होने पर, वह छलनी से चंद्रमा को देखती हैं और अर्घ्य देती हैं। इसके बाद, वह अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करके अपना व्रत तोड़ती हैं।
किस योग में करवा चौथ की पूजा नहीं करनी चाहिए
इस वर्ष करवा चौथ पर सिद्धि योग का शुभ संयोग रहेगा, जो व्रत के प्रभाव को बहुत बढ़ा देता है। लेकिन उसके बाद व्यतिपात योग लग रहा है, जिसे अशुभ माना जाता है। इस योग के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए, 10 अक्टूबर को शाम 5:42 बजे से पहले पूरी पूजा विधि पूरी कर लेनी चाहिए। चंद्रोदय के समय केवल चंद्र पूजा और पाणिग्रहण संस्कार ही शेष रहना चाहिए।
करवा चौथ की तिथि और समय
काशी, ऋषिकेश और महावीर स्वामी की मान्य पंचांगों के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर को रात 10:55 बजे शुरू होगी और 10 अक्टूबर को शाम 7:39 बजे तक रहेगी।
इस दिन चंद्रोदय रात 8:03 बजे होगा। कृत्तिका नक्षत्र 9 अक्टूबर को रात 8:03 बजे से 10 अक्टूबर को शाम 5:32 बजे तक रहेगा। इसके बाद रोहिणी नक्षत्र लगेगा, जो 11 अक्टूबर को दोपहर 3:27 बजे तक रहेगा।
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