‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद केंद्र सरकार द्वारा घोषित अचानक सीजफायर पर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि जब भारतीय सेना पाकिस्तान पर दबदबा बनाए हुए थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीजफायर पर कैसे सहमत हो गए? समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में सिसोदिया ने कहा, “पहलगाम में हुए आतंकी हमले से देश आक्रोशित था। भारतीय सेना ने सात मई को 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाकर आतंकवादियों के अड्डों को तबाह किया, जिससे देश को राहत मिली। इसके बाद सेना ने लगातार जवाबी कार्रवाई जारी रखी और पाकिस्तान के हथियारों को हवा में ही नष्ट कर दिया। ऐसे में देश की सेना मजबूत स्थिति में थी और पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा था।”
उन्होंने सवाल उठाया, “जब सब कुछ हमारे पक्ष में था, पाकिस्तान पीछे हट रहा था, तब केंद्र सरकार ने अचानक सीजफायर क्यों स्वीकार किया? प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को जब देश को संबोधित किया, तब उम्मीद थी कि वो इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करेंगे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। इससे देश के मन में और भी सवाल उठ खड़े हुए हैं।”
सिसोदिया ने यह भी कहा कि पाकिस्तान एक आतंकी देश है और जब वो भारत पर हमले कर रहा था, तो उसके खिलाफ सख्त जवाब देना जरूरी था। उन्होंने केंद्र सरकार के उस दावे पर भी सवाल उठाया जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान ने पीछे हटने और शांति की अपील की थी। "अगर पाकिस्तान पीछे हट रहा था और हाथ जोड़ रहा था, तो हमें आतंकियों को सौंपने की शर्त रखनी चाहिए थी। सीजफायर का यह फैसला आखिर क्यों और किस दबाव में लिया गया? जब सेना को बढ़त थी, तब पीछे क्यों हटा गया?" – सिसोदिया ने कहा। उन्होंने आगे जोड़ा, “पूरा देश सेना के साथ खड़ा था, सरकार को पूरे देश का समर्थन प्राप्त था। फिर भी सरकार ने उस समय सीजफायर का रास्ता क्यों चुना जब पाकिस्तान पूरी तरह कमजोर था?” सिसोदिया की टिप्पणी ऐसे समय आई है जब देशभर में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर चर्चा जारी है। भारतीय सेना द्वारा आतंक के खिलाफ किए गए इस जवाबी हमले की सराहना हो रही है, वहीं अब विपक्ष इसके बाद हुए अचानक सीजफायर पर पारदर्शिता की मांग कर रहा है।
निष्कर्ष:‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बावजूद केंद्र सरकार के सीजफायर फैसले को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दल इस फैसले पर प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण की मांग कर रहे हैं। देश की जनता और सेना के मनोबल के बीच, यह सवाल अब चर्चा का विषय बन गया है कि जब भारत दबाव में नहीं था, तो शांति की पहल की जरूरत क्यों पड़ी?
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