Next Story
Newszop

यहां मर्दानगी साबित करने के लिए शादी से पहले पुरुषों को करना पड़ता है ये काम

Send Push

भारत को परंपराओं और सांस्कृतिक विविधता का देश कहा जाता है। यहां शादी को सात जन्मों का पवित्र बंधन माना जाता है, जिसमें केवल दो व्यक्तियों का ही नहीं, बल्कि दो परिवारों का भी संगम होता है। शादी एक ऐसा रिश्ता है जिसमें विश्वास, समर्पण और सम्मान की नींव होती है। लेकिन समाज के कुछ हिस्सों में आज भी ऐसे रूढ़िवादी और अपमानजनक रीति-रिवाज प्रचलित हैं, जो इस पवित्र रिश्ते को सवालों के घेरे में ला देते हैं।

जहां शादी से पहले लड़कों को मर्दानगी और लड़कियों को कौमार्य साबित करना पड़ता है

समाज के कुछ समुदायों में आज भी शादी से पहले लड़कों को अपनी मर्दानगी और लड़कियों को अपने कौमार्य का प्रमाण देना पड़ता है। यह सुनकर जितना चौंकाने वाला लगता है, वास्तविकता में उतना ही मानवाधिकार और निजता के विरुद्ध है।

ऐसी प्रथाएं न सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि विवाह जैसे पवित्र संबंध को शारीरिक क्षमताओं और यौन अपेक्षाओं से जोड़कर एक संकीर्ण मानसिकता को दर्शाती हैं।

मर्दानगी की अजीब परीक्षा: 120 वोल्ट का बिजली झटका

भारत ही नहीं, कई पश्चिमी देशों और कुछ खास जनजातियों में भी शादी से पहले लड़कों को अजीबो-गरीब परीक्षण से गुजरना पड़ता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ जगहों पर लड़कों को शराब पिलाने के बाद 120 वोल्ट का बिजली झटका दिया जाता है।

अगर लड़का उस झटके को सह लेता है तो उसे "मर्द" माना जाता है और लड़की उससे शादी करने को तैयार होती है। लेकिन यदि वह असहज महसूस करता है या झटका सह नहीं पाता तो लड़की उससे विवाह नहीं करती।

सवाल यह है: क्या मर्दानगी का पैमाना दर्द सहने की क्षमता है?

क्या किसी पुरुष की मर्दानगी का पैमाना उसकी शारीरिक ताकत या दर्द सहने की क्षमता होनी चाहिए? क्या भावनात्मक समझदारी, जिम्मेदारी उठाने की योग्यता, और रिश्ते निभाने की भावना को मर्दानगी में जगह नहीं मिलनी चाहिए?

ऐसे रीति-रिवाज पुरुषों की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा को भी खतरे में डालते हैं। यह न केवल खतरनाक है, बल्कि इंसानियत के खिलाफ भी है।

लड़कियों की कौमार्य जांच: महिलाओं का अपमान

इसी तरह कई समुदायों में शादी से पहले लड़कियों की कौमार्य जांच की परंपरा भी है। कुछ जगहों पर सफेद चादर की परंपरा के जरिए शादी की पहली रात लड़की के 'पवित्र' होने का सबूत मांगा जाता है।

यह न सिर्फ एक महिला की निजता का घोर उल्लंघन है, बल्कि उसे एक वस्तु या प्रमाणपत्र की तरह देखना है। विज्ञान भी कई बार कह चुका है कि कौमार्य का कोई वैज्ञानिक मापदंड नहीं होता, और यह केवल सामाजिक मान्यताओं और मिथकों पर आधारित अवधारणा है।

इन प्रथाओं का मनोवैज्ञानिक असर

ऐसी परंपराएं व्यक्ति के मनोबल, आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती हैं। पुरुषों को "मर्द" साबित करने की दबाव में डाला जाता है, और महिलाओं को "पवित्रता" की कसौटी पर तौला जाता है।

इससे रिश्तों की नींव भरोसे और प्यार की बजाय संदेह और शर्तों पर टिकती है, जो भविष्य में शादी को और भी कमजोर बना सकती है।

आधुनिक समाज और पुरानी सोच की टकराहट

हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, जहां शिक्षा, विज्ञान और समानता को जीवन के मूल तत्व माना जाता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हमें अब भी शादी से पहले मर्दानगी या कौमार्य की परीक्षा जैसी परंपराओं को सही ठहराना चाहिए?

आधुनिक समाज में रिश्तों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि दोनों साथी एक-दूसरे को कितनी सम्मान, समझ और स्वतंत्रता देते हैं, न कि इस पर कि वे किसी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं या नहीं।

क्या कहता है कानून?

भारत के संविधान में हर नागरिक को निजता का अधिकार प्राप्त है। किसी भी व्यक्ति को उसकी यौन गतिविधियों, कौमार्य या मर्दानगी के लिए सार्वजनिक रूप से अपमानित करना या जांच करना मानवाधिकारों का उल्लंघन है।

हालांकि इन प्रथाओं को रोकने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन इन्हें रोकने के लिए समाज को स्वयं जागरूक होना होगा और इस मानसिकता को जड़ से खत्म करना होगा।

निष्कर्ष: परंपरा को सुधारने की जरूरत

भारत और अन्य देशों में जहां शादी को जीवनभर का पवित्र रिश्ता माना जाता है, वहां इस तरह की हिंसात्मक और अपमानजनक परंपराएं उस रिश्ते की नींव को ही हिला देती हैं।

समाज को यह समझना होगा कि शादी केवल शारीरिक संबंधों या परीक्षणों पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह दो आत्माओं का मिलन है जिसमें विश्वास, सम्मान, प्रेम और बराबरी की भावना होनी चाहिए।

हमें जरूरत है कि इन कुप्रथाओं और मानसिक दासता से बाहर निकलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जहां शादी से पहले प्रेम, समझ और भरोसे की परीक्षा ली जाए – न कि मर्दानगी या कौमार्य की।

भारत को परंपराओं और सांस्कृतिक विविधता का देश कहा जाता है। यहां शादी को सात जन्मों का पवित्र बंधन माना जाता है, जिसमें केवल दो व्यक्तियों का ही नहीं, बल्कि दो परिवारों का भी संगम होता है। शादी एक ऐसा रिश्ता है जिसमें विश्वास, समर्पण और सम्मान की नींव होती है। लेकिन समाज के कुछ हिस्सों में आज भी ऐसे रूढ़िवादी और अपमानजनक रीति-रिवाज प्रचलित हैं, जो इस पवित्र रिश्ते को सवालों के घेरे में ला देते हैं।

जहां शादी से पहले लड़कों को मर्दानगी और लड़कियों को कौमार्य साबित करना पड़ता है

समाज के कुछ समुदायों में आज भी शादी से पहले लड़कों को अपनी मर्दानगी और लड़कियों को अपने कौमार्य का प्रमाण देना पड़ता है। यह सुनकर जितना चौंकाने वाला लगता है, वास्तविकता में उतना ही मानवाधिकार और निजता के विरुद्ध है।

ऐसी प्रथाएं न सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि विवाह जैसे पवित्र संबंध को शारीरिक क्षमताओं और यौन अपेक्षाओं से जोड़कर एक संकीर्ण मानसिकता को दर्शाती हैं।

मर्दानगी की अजीब परीक्षा: 120 वोल्ट का बिजली झटका

भारत ही नहीं, कई पश्चिमी देशों और कुछ खास जनजातियों में भी शादी से पहले लड़कों को अजीबो-गरीब परीक्षण से गुजरना पड़ता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ जगहों पर लड़कों को शराब पिलाने के बाद 120 वोल्ट का बिजली झटका दिया जाता है।

अगर लड़का उस झटके को सह लेता है तो उसे "मर्द" माना जाता है और लड़की उससे शादी करने को तैयार होती है। लेकिन यदि वह असहज महसूस करता है या झटका सह नहीं पाता तो लड़की उससे विवाह नहीं करती।

सवाल यह है: क्या मर्दानगी का पैमाना दर्द सहने की क्षमता है?

क्या किसी पुरुष की मर्दानगी का पैमाना उसकी शारीरिक ताकत या दर्द सहने की क्षमता होनी चाहिए? क्या भावनात्मक समझदारी, जिम्मेदारी उठाने की योग्यता, और रिश्ते निभाने की भावना को मर्दानगी में जगह नहीं मिलनी चाहिए?

ऐसे रीति-रिवाज पुरुषों की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा को भी खतरे में डालते हैं। यह न केवल खतरनाक है, बल्कि इंसानियत के खिलाफ भी है।

लड़कियों की कौमार्य जांच: महिलाओं का अपमान

इसी तरह कई समुदायों में शादी से पहले लड़कियों की कौमार्य जांच की परंपरा भी है। कुछ जगहों पर सफेद चादर की परंपरा के जरिए शादी की पहली रात लड़की के 'पवित्र' होने का सबूत मांगा जाता है।

यह न सिर्फ एक महिला की निजता का घोर उल्लंघन है, बल्कि उसे एक वस्तु या प्रमाणपत्र की तरह देखना है। विज्ञान भी कई बार कह चुका है कि कौमार्य का कोई वैज्ञानिक मापदंड नहीं होता, और यह केवल सामाजिक मान्यताओं और मिथकों पर आधारित अवधारणा है।

इन प्रथाओं का मनोवैज्ञानिक असर

ऐसी परंपराएं व्यक्ति के मनोबल, आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती हैं। पुरुषों को "मर्द" साबित करने की दबाव में डाला जाता है, और महिलाओं को "पवित्रता" की कसौटी पर तौला जाता है।

इससे रिश्तों की नींव भरोसे और प्यार की बजाय संदेह और शर्तों पर टिकती है, जो भविष्य में शादी को और भी कमजोर बना सकती है।

आधुनिक समाज और पुरानी सोच की टकराहट

हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, जहां शिक्षा, विज्ञान और समानता को जीवन के मूल तत्व माना जाता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हमें अब भी शादी से पहले मर्दानगी या कौमार्य की परीक्षा जैसी परंपराओं को सही ठहराना चाहिए?

आधुनिक समाज में रिश्तों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि दोनों साथी एक-दूसरे को कितनी सम्मान, समझ और स्वतंत्रता देते हैं, न कि इस पर कि वे किसी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं या नहीं।

क्या कहता है कानून?

भारत के संविधान में हर नागरिक को निजता का अधिकार प्राप्त है। किसी भी व्यक्ति को उसकी यौन गतिविधियों, कौमार्य या मर्दानगी के लिए सार्वजनिक रूप से अपमानित करना या जांच करना मानवाधिकारों का उल्लंघन है।

हालांकि इन प्रथाओं को रोकने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन इन्हें रोकने के लिए समाज को स्वयं जागरूक होना होगा और इस मानसिकता को जड़ से खत्म करना होगा।

निष्कर्ष: परंपरा को सुधारने की जरूरत

भारत और अन्य देशों में जहां शादी को जीवनभर का पवित्र रिश्ता माना जाता है, वहां इस तरह की हिंसात्मक और अपमानजनक परंपराएं उस रिश्ते की नींव को ही हिला देती हैं।

समाज को यह समझना होगा कि शादी केवल शारीरिक संबंधों या परीक्षणों पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह दो आत्माओं का मिलन है जिसमें विश्वास, सम्मान, प्रेम और बराबरी की भावना होनी चाहिए।

हमें जरूरत है कि इन कुप्रथाओं और मानसिक दासता से बाहर निकलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जहां शादी से पहले प्रेम, समझ और भरोसे की परीक्षा ली जाए – न कि मर्दानगी या कौमार्य की।

Loving Newspoint? Download the app now