आज के तेजी से बदलते समाज में रिश्तों की परिभाषाएं भी बदल रही हैं। सोशल मीडिया, डेटिंग ऐप्स और त्वरित संवाद के इस युग में "प्रेम" और "वासना" के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है। अक्सर लोग इन दोनों शब्दों को एक-दूसरे का पर्याय मान लेते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि प्रेम और वासना में जमीन-आसमान का फर्क होता है। यह फर्क केवल भावना का नहीं, बल्कि दृष्टिकोण, सोच और आत्मा के स्तर पर भी होता है।
प्रेम: आत्मा का जुड़ाव, निस्वार्थ भावना
प्रेम एक ऐसी भावना है, जो समय, रूप, लाभ और शारीरिक इच्छाओं से परे होती है। यह आत्मा से आत्मा का मिलन है। प्रेम में अपनापन, परवाह और त्याग होता है। जब कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करता है, तो वह सिर्फ उसकी सुंदरता या शरीर से नहीं जुड़ता, बल्कि उसके विचारों, स्वभाव और दुख-सुख से जुड़ जाता है।प्रेम में सबसे बड़ा गुण होता है — स्वीकृति। आप सामने वाले को उसकी कमियों और खूबियों के साथ स्वीकार करते हैं। उसमें सुधार लाने की बजाय, उसके साथ खुद भी बदलने का प्रयास करते हैं। प्रेम में धैर्य होता है, समझदारी होती है और सबसे महत्वपूर्ण — समय के साथ बढ़ने की क्षमता होती है।
वासना: शरीर की चाह, क्षणिक आकर्षण
इसके उलट, वासना केवल शारीरिक आकर्षण पर आधारित होती है। यह मन और इंद्रियों की एक क्षणिक प्रतिक्रिया है जो किसी की सुंदरता, चाल-ढाल या शारीरिक भाषा से उपजती है। वासना में स्वार्थ छुपा होता है — वह ‘मैं क्या पा सकता हूँ’ की भावना होती है, न कि ‘मैं क्या दे सकता हूँ।’वासना क्षणिक होती है, जबकि प्रेम कालातीत होता है। जब वासना पूरी हो जाती है, तब व्यक्ति का आकर्षण भी खत्म हो जाता है। जबकि प्रेम में एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने की इच्छा बनी रहती है, चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों।
समाज में भ्रम क्यों है?
आज के समय में फिल्मों, वेब सीरीज और सोशल मीडिया के माध्यम से वासना को प्रेम का नाम दे दिया गया है। ‘लव ऐट फर्स्ट साइट’ जैसे शब्दों ने लोगों की सोच को इस हद तक प्रभावित कर दिया है कि अब गहराई से सोचने की आदत ही नहीं रही।रिश्तों में सच्चा प्रेम खोजने के बजाए, लोग केवल आकर्षण के पीछे भागते हैं। नतीजा ये होता है कि जब आकर्षण खत्म होता है, तो रिश्ते भी टूट जाते हैं। ऐसे में दिल टूटते हैं, विश्वास डगमगाता है और लोग सच्चे प्रेम पर से भरोसा खो बैठते हैं।
कैसे पहचानें कि आप प्रेम में हैं या वासना में?
यह सवाल आज हर युवा के मन में होता है कि वह जो महसूस कर रहा है, वह प्रेम है या वासना। इसके लिए कुछ सरल संकेतों को समझना जरूरी है:
अगर आपकी भावनाएं केवल शारीरिक निकटता तक सीमित हैं, तो यह वासना हो सकती है।
अगर आप उस व्यक्ति की आत्मा, उसके संघर्ष, उसके विचार और उसके भविष्य को लेकर सोचते हैं, तो यह प्रेम है।
वासना आपको बेचैन करती है, जबकि प्रेम आपको शांत करता है।
वासना की पूर्ति के बाद संबंध फीका पड़ जाता है, लेकिन प्रेम समय के साथ गहराता है।
प्रेम में वासना हो सकती है, लेकिन…
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि प्रेम में वासना हो सकती है, लेकिन वासना में प्रेम नहीं होता। जब दो लोग एक-दूसरे से सच्चा प्रेम करते हैं, तो उनके बीच शारीरिक संबंध भी एक पवित्र और सहज प्रक्रिया होती है, जिसमें आत्मीयता और आदर होता है।लेकिन जब केवल वासना ही संबंध का आधार बन जाए, तो वहाँ से मनमुटाव, धोखा और रिश्तों की अस्थिरता की शुरुआत होती है।
समाज को क्या करना चाहिए?
आज ज़रूरत है कि हम प्रेम और वासना के बीच फर्क को समझें और अगली पीढ़ी को भी समझाएं। स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक मंचों पर इस विषय पर खुले विचार-विमर्श की आवश्यकता है। यदि युवा पीढ़ी इस फर्क को समझ सके, तो समाज में स्थायी, मजबूत और सच्चे रिश्तों की नींव रखी जा सकती है।
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