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हिन्दी प्रेम कविता : तुमसे मिलकर

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तुम आये

जैसे एक लंबे सूखे के बाद

पहली बार धरती पर

बादल फूट पड़े हों।

मैं हरा हुआ

अपने ही भीतर।

उस क्षण,

मैंने समय को रुकते देखा

घड़ियां सांसें लेने लगीं,

पलकों पर ठहर गईं सदियां।

तुम्हारी आंखों में

कोई भूला हुआ जन्म चमक उठा,

और मैं

तुम्हारे नाम से पहले ही

तुम्हें पहचान गया।

हम नहीं मिले थे,

हम तो

पुनः प्राप्त हुए थे

जैसे कोई स्वर

अपनी धुन में लौट आता है,

या कोई राग

फिर से किसी वाद्य में

खुद को सुन ले।

तुम्हारी हथेलियों की गर्माहट

मेरे भविष्य की भविष्यवाणी बन गई,

और तुम्हारी मुस्कान

मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर।

मिलन कोई क्षण नहीं था,

वह तो एक जन्मांतर की पूर्णता थी,

जहां देह से पहले

मन जुड़ते हैं

और आत्माएं

एक-दूसरे की भाषा बन जाती हैं।

उस दिन,

जब तुम मेरे सामने थी

मैं खुद को भूल गया।

और तभी जाना

मिलन का सार

विस्मरण में है,

जहां 'मैं' मिटता है,

और 'हम' जन्म लेता है।


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